बादल उमड़ – घुमड़ रहे
बिजली भी चमक रही
सहमा सहमा सा सब
सहसा हुई घोर गर्जना
अंतस आसुओं से भीगा
चक्रवात कोई आ रहा
हवाओं के सरपट दौड़ शुरू
झाड़ -झंखाड़ को वह उखाड़
लिए कहीं जा रहा आ रहा
कौंध जाती है ये बिजलियां
काले काले बादल अचानक
रूप बढ़ाते विस्तार दिखाते
मूसलाधार बारिश होने को
चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा
घनघोर घटा छाती जा रही
बिजलियों से ही कुछ दिखता
वर्षा की बूंदे धरती को चूमे
पानी गिरने की आवाज
पत्तों पे जोरों से सुनाई दे
सराबोर हो गया भीग के
ये कैसे बादल और बरसात है
जो दूसरों के साथ नही है अभी
विचारों की भी है अपनी दुनियाँ
जिसकी अपनी अपनी जगत है
मानसून है, बरसात है, सूखा भी
इसकी भी नदियां हैं, धार है
तट है, मंझधार है , मिलन है
बहते रहने का भी सार है
डेल्टा है, अवसाद है ,गाद है
कहीं सूखा है ,बाढ़ है, सैलाब है
विचारों का संसार है ख़्वाब है
खुद का अस्तित्व है कहानी भी…….
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