प्यासी धरती प्यासा वन
पिघल उठा बादल का मन
टिप टिप पानी की बूंदे
हरी-भरी धरती को चूमे । 1
रिमझिम रिमझिम चली फुहार
बढ़ चली नदियों की धार
देख मन हर्षा लोहार
हरियाली कि आई त्यौहार । 2
नाचे वन मोर मयूरा
बूंदों की पड़ी बौछार
बिजली चमकी बादल गरजा
गरजे गिरकर गिरी से निर्झर । 3
धरा पर बजी बूंदों की ताली
चारों तरफ पानी की प्याली
मेह कपासी कभी हो काली
पपीहा हुई है आज मतवाली । 4
वर्षा होती है घूम-घूम
धरती मां को चूम चूम
पादप नाचे झूम झूम
किसान का खिले रोम रोम । 5
सन- सन चलती बयार
पानी गिरता मूसलाधार
पपीहा के प्रीत का सार
जल जीवन का आधार । 6
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