गर ढूंढू मैं वजह तुमसे बात करने के लिए
फिर किसके पास जाऊं झोली भरने के लिए
जो हंथेली पे अपनी जान रखके चलते हैं
नही सोचते वो फिर वतन पे मरने के लिए
जिसने बसा रखा है अपने दिल में इंसानियत
कभी लड़ता नहीं इंसानों से अपने धर्म के लिए
जो गाता है अपने दिल से मौसम का तराना
वो डरता नहीं कभी बरखा , सर्द, गर्म, के लिए
जानता है जो हरदम खुशी का राज़
वो रोता रहता नही है किसी भी दर्द के लिए
जिसने ताउम्र गुजारी है फकीरी में रात
वो मरता नही है किसी भी धन दौलत के लिए
हकीकत जानता है जो यहां जिंदगी का
लुटाता है सब कुछ किसी की हंसी के लिए
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