सुबह 4:45 में मोबाइल का अलार्म बजने लगा श्याम गहरी नींद में सो रहा था पर अलार्म की आवाज सुनाई दी, 5:00 बजे पिता जी उठाएंगे न यह सोचकर अलार्म स्टॉप कर पुनः सो गया, क्योंकि रात को श्याम ने अपने पिता जी को सुबह 5 बजे उठाने को कह दिया था। उसे पता था पिता जी सुबह जल्दी उठ जाते हैं। यह वर्षों से उनका काम है। वे संकीर्तन मंडली के सदस्य हैं। रमेश ने भी यहां यही बात कही थी कि तू पिताजी को सुबह उठाने की बात निः संकोच कह दे। रमेश श्याम का छोटा भाई है। मन में नफ़रत 1% था प्यार ज्यादा क्योंकि शाम को श्याम से उसके मां और पिताजी के बीच कुछ कहासुनी हो गई थी। पिताजी रोज सुबह जल्दी उठ जाते हैं क्योंकि वह भगवान की पूजा करते हैं। श्याम यह नहीं जानता कि वे कैसी पूजा करते हैं ? अपने अंदर की ईश्वर की पूजा करते हैं या फिर उन्हें बाहर ढूंढते हैं ? उन्होंने श्याम को सुबह उठाया वह झटपट उठा और ब्रश किया कि रमेश की आवाज आ गई दो नंबर से जल्दी आओ नहीं तो मैं जाऊंगा।
श्याम ने कहा तुरंत आ रहा हूं आने के बाद उसने तैयारी की सामान चावल दाल को उठाया ।
ठंड का समय था अतः सांसों में कपकपी थी रमेश भी तैयार हो गया, श्याम ने अपने मां के पास जाकर चरण छुआ और उनका आशीर्वाद लिया । आशीर्वाद प्राप्त करते समय उसे दुख हुआ क्योंकि उसने उनका दिल दुखाया था । लेकिन मन सशक्त भी था क्योंकि सच्चाई के साथ रहने से निडरता एवं विश्वास दोनों साथ नहीं छोड़ते हैं । उसके पिताजी तालाब नहाने चल दिए थे। घर के सामने ही जगन्नाथ जी का मंदिर है उस वक्त पुजारी पूजा कर रहा था, श्याम ने ईश्वर के चरणों में मंदिर की सीढ़ी पे अपना शीश नवाया और कहा हे प्रभु मुझे शक्ति, समझ एवं सद्बुद्धि देना । बस तू ही है संसार में जिसमें सब कुछ है और तू सब में है । रमेश ने ऑटो स्टार्ट किया एवं स्टेशन की ओर निकल गए । स्टेशन पहुंचे ट्रेन को आने में अभी काफी समय था । रमेश को श्याम ने कहा तू जा मैं सामान उठाकर ले जा सकता हूं । क्योंकि रमेश को जल्दी थी वह सुबह निकलते समय ही जल्दी आने एवं बाहर बुकिंग पे जाने का वादा कर चुका था जिसे श्याम ने स्वंय सुना था । श्याम सामान कंधे पर उठाया, एक बैग था जिसमें ट्रेनिंग के कुछ नोट्स एवं एक जोड़ी शर्ट पैंट थे उसे भी लटका लिया और आगे बढ़ने लगा तभी उसे डॉक्टर ईश्वर चंद विद्यासागर की बातें याद आई जो बचपन में पढ़ी थी ” अपना काम आप करो ” इस बात की सार्थकता से उसे बापू की भी याद आई जो ” सादा जीवन उच्च विचार ” तथा अहिंसा से पूरी दुनिया में मानवता को कायम रखा ।
टिकट काउंटर पर पहुंचते ही श्याम की मुलाकात अजनबी लोगों से हुई तभी उसने कार्तिक को फोन किया, बोला कहां हो ? उसने स्टेशन में हूं कह श्याम से पूछा टिकट ले लिया क्या ? श्याम ने हां कहा, कार्तिक ने कहा मैं प्लेटफार्म नम्बर 03 में हूं तीसरी बोगी के पास खड़ा हूं । श्याम ने कहा ठीक है , मैं टिकट लेकर आ रहा हूं वही रहना । वह टिकट लेकर पहुंच गया अभी लगभग आधा घंटा बचा था बातें होने लगी श्याम ने कहा और कार्तिक सब ठीक है। उसने कहा ठीक है भैया, बस गौतम ने यह सामान मंगवाए हैं इसलिए जा रहा हूं तभी वहां एक मियां जी भी चाय पीते आ गए एवं बातें किए । बताया मैं चाचा को लेने जाऊंगा हमने कहा ठीक है गाड़ी में हम जाकर बैठे ।गाड़ी चली हम बातें करते रहे गौतम के बारे में पूछा उसेके सभी भाइयों के बारे में भी लड़की ढूंढने की बात कार्तिक ने बताया । गौतम को अब शादी कर लेना चाहिए गौतम भैया को मैंने कहा क्योंकि उम्र का फेर भी जीवन को मुसीबतों में कभी- कभी में डाल देता हैं एवं परिवार बिखर जाता है । उसने भी अपनी बात से मेरे बातों का समर्थन देते हुए अपने अनुभव इस बारे में बताया । उसने अपने परिवार की हालात एवं जिंदगी की आपबीती सुनाई।
- कैसे उसने संघर्ष करके आज जीवन को पतवार से इस संसार में नैया पार लगा रहा है।
- तैरना सीखा तथा कैसे भव सागर में नाव खेना है ?
- वह भी पढ़ाई के लिए जब स्कूल जा रहा था, स्कूल में कक्षा चौथी में था । उस समय एक शिक्षक ने उसको बेवजह मारा । वजह इतना था कि वह समय से पहले गणित को बनाकर बताया था । शिक्षक के मारने पर वह बेहोश हो गया था । पानी का छींटा मारने व हवा करने के बाद उसे होश आया । तभी उसने ठान लिया कि मुझे अब पढ़ना नहीं है क्योंकि जिसके शिक्षक लोगों से जानवर जैसे बर्ताव करते हैं।
- वहां क्या काम करूँ मैं ?
- कैसे सीखूं वहां ?
- उसने शिक्षक की इस करतूत का बदला लेने के लिए उसे एक इंट का टुकड़ा दे मारा जिससे शिक्षक कुर्सी से गिर पड़ा वही और उसे अपने करतूत का एहसास भी हो गया । उस दिन से वह पढ़ाई छोड़ दिया, पर वह बहुत ही ज्ञानी है। वास्तविक ज्ञान तो अक्षर से परे भी प्रकृति के प्यार से मिलती है। उसने यही से अनुभव की अपनी नाव बनाना सीख गया जिसमें बैठकर प्रेम से बहुत दूर दूर तक घूम आया था वह। उसने कहा आज मेरे गांव जाने पर मुझे देख कर खुश होते हैं लोग। अपनी कहानी श्याम ने भी सुनाई की क्या हमारे साथ बिता है :-
- घर में लड़ाई कल क्यों हुई ?
- उसका बीज क्या है ?
- इसको उगाना क्यों जरूरी था ?
कुल्हाड़ी की धार जब कम हो जाती है तो उसे लोहार के पास ले जाकर उसको पहले की तरह वैसा बनाया जाता है क्योंकि बिना धार के कुल्हाड़ी से काटना तो दूर समय भी बर्बाद होता है एवं काम में थकान लगती है। लोहार उसे गर्म कर आग में तपाता है उसे हथोड़ा से पीटता है फिर पानी में कुछ डालता है ठंडा करता है । इस पूरे प्रक्रिया को आँचलिक भाषा में पानी पियाना कहते हैं , तभी वह धारदार एवं मजबूत बनता है। यह प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है यही कार्य लोहार के समान श्याम ने अपने घर में भी किया है । इसमें दर्द घर वालों को जरूर हुआ पर यह हमारे विकास के लिए जरूरी था श्याम का कहना था । सत्य की धार जब कम हो जाए तो उसे तप्त करना पड़ता है जिससे उसमें अशुद्धि ना रहे । यदि उसमें अशुद्धि मिल जाती है तो वह धूमिल हो जाता है। उसकी धार कम हो जाती है जो नियति की नियत के विरुद्ध है क्योंकि नियति सत्य की राह पर चलती है, जो ईश्वर का रूप है ।
श्याम के पिताजी मेट्रिक पढ़े हैं। वे पहले जमाने के अच्छे खासे लोगों में से हैं । उनके पास अनुभव का समंदर भी है पर अब वह लगता है शांत हो चुका है क्योंकि उसमें अब लहरें कम ही दिखाई देती है । वे ईश्वर की खोज कर रहे हैं न जाने ईश्वर उनका कहां बैठा है ? मुझे लगता है वे मानवता में ईश्वर की खोज का रास्ता कहीं न कहीं भूल आए हैं । उनकी व्यवहार अब दिल को दर्द देते हैं क्योंकि झूठ का रास्ता कभी-कभी अख्तियार कर लेते हैं जो उनकी स्वभाव बन चुकी है। स्वभाव को बदलने के लिए पूरा पैराडाइम शिफ्ट करना होगा उनका जो आज इतना आसान नहीं है पर इतना मुश्किल भी नहीं। बस इरादे मजबूत हो तो सब बिगड़े काम बन जाते हैं ।
ट्रेनिंग के दौरान श्याम ने ऐसे कई लोगों को ट्रेनिंग देते पाया है जिसमें आज भी चमक है क्योंकि उनमें देने की, पाने की चाह है । वह व्यक्ति हो या राज्य या देश इच्छा बनी हुई है । नवीनता को बड़ी आसानी से ग्रहण कर लेते हैं उसे नकारते नहीं, इस कारण आज भी उनकी जीवन की रफ्तार युवा नदी की प्रारंभिक अवस्था की तरह गहराई के साथ कई साधनाओं के लिए चल रही है । लेकिन उम्र तो उम्र है वह भी गतिमान है जिसे नकारा नहि कहाँ जा सकता। जिसे नकारा नही जा सकता है। उसे साधा जा सकता है। श्याम ने देखा पाया
- आखिर उनमें भी यह शक्ति कैसे आती है ?
- वह क्यों इतने उत्सुक हैं ?
- कैसे नवीनता को अभी भी लेने की आसानी से सामर्थ रखते हैं वो ?
- उनमें इतनी ऊर्जा कहाँ से आती है ?
बहुत सारे प्रश्न हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं हमने देखा उनमें कठोरता भी है लेकिन अंदर पानी की हिलोरे भी भरी है जो उनकी जीवंत होने का प्रमाण है । साथ – साथ कुछ जीवन की उष्णता में सुख भी गए हो पर उनमें चमक भी है नारियल की भांति । हां पिताजी भी कोविद किए हुए थे अपने समय में । कोविद का तात्पर्य हिंदी भाषा का विशेष ज्ञान । पर उनकी जीवन की ना जाने कौन सी ऐसी घटना है ? जो उन्हें यथार्थवादी से पलायनवादी बना दिया । बचपन में व्यक्ति अपना अवचेतन मस्तिष्क ज्यादा शक्तिसक्रिय रहता ह।चेतना का विकास क्रमिक प्रकिरयों स्व । समज में भी घटना घटित होती है अच्छा या बुरा हो । अनुभव वह संग्रह करते ज्याता है। उसमे अंतर करने का गुण अभी विकसित नही हुआ रहता है जो ससक्त हो पाए ।
लड़ाई के लिए तथ्य कई वर्षों से श्याम के मन में जमा होते जा रहे थे अपने आप क्योंकि हर कोई हर किसी की दिनचर्या एवं कार्य कलाप को समाज के सदस्य के नाते देख रहा है, परिवार के सदस्य के नाते देख रहा है । नजरअंदाज करने के बावजूद वह एक तीसरी नजर में देखता है जहां संग्रह होता रहता है अवचेतन में और फिर वह गुणात्मक रूप से चेतन से फिर जुड़ जाता है तभी वह तर्क करता है बीते बातों को घटनाओं से जोड़कर । घटनाओं का हूबहू चित्रण मानसिक पटल पर होता है। पर इंसान जैसे- जैसे बड़ा होता है उसकी चेतना का विकास होता है फिर वह तार्किकता की ओर बढ़ता है जो एक दूसरा रास्ता है सत्य के आग्रह का । श्याम ने भी वही किया पुरानी घटनाओं का अब तर्क उसके मानसिक पटल पर होने लगा है । कारण कार्य संबंध प्रकट होने लगे हैं जिससे ना कहना मानव शक्ति की अवहेलना करना है । हां यह सही है कि उसे समझ जाएं समाधान खोजा जाए । उसने तो हमेशा से सत्य को ही ईश्वर माना है एवं उसकी चमक भी देखी है । उसने कार्तिक को कुछ सुनाने को कहा। वह जानता था की कार्तिक एक बहुत ही सज्जन एवं सुंदर आदमी है, उसके अंदर प्रेम का सागर है। श्याम ने उसे हमेशा मुस्कुराते हुए देखा है जब भी देखा है ।
- श्याम ने कार्तिक से पूछा है तुम्हारे जीवन में परिवर्तन कहां से आया ?
- तूम इतना परिष्कृत कैसे हुए ?
- कब से परिवर्तन को समझे ?
शोधित सोना का मूल्य बढ़ जाता है क्योंकि उसकी चमक बढ़ जाती है, उस पर बाह्य वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। वह खरा का खरा रहता है, उसकी मूल्य में गिरावट नहीं आती है । कार्तिक भी ऐसा ही व्यक्तित्व का धनी था। व्यक्ति इंसान इंसानियत से बनता है जो परीक्षा की आग में तप कर पक्की होती है । तभी कार्तिक ने कहा भैया मेरा शोधन , निस्तापन, जारण या भर्जन की प्रक्रिया जैसी हुई है, तभी आज मैं ऐसा बन पाया। इसके पीछे एक नए नाटक का हाथ है । यह बीते समय की बात है, जब मैं युवा था। उस समय गांव में मनोरंजन का कोई साधन नहीं था । लोग नाटकों के माध्यम से संदेश एवं मनोरंजन के साथ शिक्षा अभियान का प्रचार प्रसार करते थे। पूरा गांव एक खुशी के माहौल में रंग जाता था । जब ठंड की समय आता रात बड़ी हो जाती तभी नाटकों का मंचन होता । अलग अलग आदमी अलग अलग भूमिका को निभाता है संवाद के माध्यम से और किरदार को जीवंत बनाते हैं। उस समय टी व्ही व मोबाइल , इंटरनेट का जमाना नही था कहीं कहीं रेडियो सुनने को मिलता जो कौतूहल का केंद्र होता । गांव में जहां आत्मीयता है अपनापन है गर्व भी है, गर्व की भावना भी है। हर व्यक्ति का एक अस्तित्व है चाहे वह जैसा भी हो उसका पद एवं स्थान है जो दूसरा ले नहीं सकता । श्याम ने उसे पूछा तुम कुछ अभिनय करते थे क्या? हां भैया वही मैं आपको बता रहा हूं कार्तिक बोला । आप भरथरी गीत सुने हो क्या ? यह उसने श्याम से पूछा । भरथरी गीत तो नहीं सुना हूं पर उसके कथानक के बारे में मैं पढ़ा हूं पुस्तक में श्याम ने कहा।
यह एक वैराग्य की कहानी है जो त्रिकोणीय प्रेम की अभिव्यक्ति है । उसने बातों में हामी भरकर कहा हां बस भैया यही नाटक मेरी शोधनशाला है । तभी श्याम ने उसे बड़े ही अचरज से देखा और उसको जानने की जिज्ञासा हुई कि आखिर इसमें ऐसा क्या है ? कार्तिक ने बताया उसको सुनकर श्याम स्तब्ध रह गया । उसको वैराग्य की सीमांत पराकाष्ठा का बोधगम्य हो गया कि ऐसा भी क्या हो सकता है । वैराग्य आध्यात्मिकता एवं प्रेम संबंधों का ऐसा जाल जिसमें व्यक्ति इंद्रजाल की तरह प्रतीत हो कर उस अगोचर को प्राप्त हो जाता है । इंद्रजाल के उस माया के भेद को जान जाता है जो भ्रम मात्र है यथार्थ तो कहीं और है । भैया मैं राजा भरथरी की भूमिका का अभिनय करता था कार्तिक ने बताया । ट्रेन में लोग सवार थे इसलिए उसने उसकी गीत नहीं गाये पर श्याम ने उसके चेहरे पर वह भाव एवं तेज देखा जो अद्भुत था । उसने बताया कि इस अभिनय ने मुझे झकझोर कर रख दिया श्याम ने कहा कैसे ? भैया राजा भरथरी प्रेम वियोग में वैरागी बन जाता है । उसकी मुक्ति तथा वैराग्य तभी सफल होती है जब वह रानी पिंगला से दान लेता है और उसमें कोई मनोविकार उतपन्न नही होता है जो उसके बैरागी होने की सार्थकता है । रानी पिंगला को यह बहन तक नही होता कि भिक्षुक कौन है ? भरथरी भी आध्यात्मिक ज्ञान से इस तरह पक चुके थे कि वे भी तनिक विचलित नही हुए । उनके मन मे भावनाओं का कोई उद्रेक नही था। वे सबमें अब आत्मस्वरूप के दर्शन करते हैं।
श्याम सुनकर अवाक रह गया उसकी बातें उसे खींच रही थी। उसने कहा कि यह दृश्य एवं अभिनय कार्तिक को रात को सोने नहीं देती है। मैं रोता रहता अकेला उस अभिनय को मैं अधिगम कर अपने आप में खो जाता हूं कार्तिक ने ऐसा कहा । एक दिन वह अभिनय करते हुए बीच में रो दिया तथा वहां से भाग गया क्योंकि आगे उसमें उस महानता को निभाने की क्षमता ना बची थी । वह उस वक्त करुणा से भर गया क्योंकि वह भी एक मानव ही है जो भावनाओं के अथाह समंदर में गोता लगाता है । गोता लगाते लगाते कभी वह थक भी जाता है या भावनाओं के भंवर में फंस भी जाता है जो उसको गुमराह कर सकती है या उसको निखार देती है कार्तिक ने कहा । उस नाटक ने उस अभिनय ने मुझे अंतरात्मा से झकझोर कर रख दिया जीवन दर्शन को समझा दिया जिसे मैं मरकर भी नही भूल सकता हूं भईया । इस कार्य को भगवान ही कर सकता है । उसके बाद से मैं ईश्वर की याद में अपना गांव छोड़ कर बाहर चला गया एवं दुनिया में पतवार चलाने लगा उसके चमक एवं भाव अभिव्यक्ति की आवाजें श्याम को आवेशित कर दिया। श्याम सोचता रहा कि ऐसा आज तक मैंने न देखा न सुना आखिर मानव के मांस के शरीर से ऊपर भी ऐसी शक्ति है जिसकी प्रेरणा व माया से इंसान मानवता को बनाए रखा है । वह अथाह सागर में भावनाओं के अनन्त लहरों से लड़ते हुए आगे बढ़ता है व अपने लक्ष्य को पाता है । वास्तव में ईश्वर सब में है इसका भान हो जाए तो फिर क्या मति क्या गति । रिश्ते नाते यह तो दुनियादारी के लिए है बाकी परमात्मा एक है एवं उसका अंश आत्माएं अनेक है जो एक स्वरूप है। महान है वह राजा जो दुनियादारी से ऊपर उठकर दुनिया को महान बनाए हुए हैं, रिश्तो को महान बनाए हुए, प्रेम को महान बनाए हुए, संसार को जीवन दिए हुए हैं । इस अनुभव को सुनना वास्तव में श्याम को अपने अस्तित्व को प्राप्त करने के समान रहा और उसे अपनी सत्ता का बोध हुआ जो परम सत्ता का ही अंश है। अंश से पूर्णता की ओर जाना अद्भुत व अनोखा है । ट्रेन स्टेशन पर पहुंच गई, दोनों उतरे और एक दूसरे यात्रा के लिए निकल गए अपने – अपने राह ।
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