आदमी जब उम्र के ढलान पर होता है
उसका अनुभव उसके जुबान पर होता है।
बहुत कुछ देखा है हरदम करके जो सीखा है
जीवन के अंतिम क्षण में इत्मीनान से होता है।
सोच समझकर चलाना चाहिए हमेशा जुबान का तीर
तबाही का आलम अकसर नदी के उफान पर होता है ।
खुदको कोई कहाँ पाता है जो अक्सर भीड़ में होता है
दर्द क्या होता है वही जानता है जिसका अपना खोता है ।
जो ज्यादा भरा पूरा है छलकता है वही तो बेचारा है
समंदर कहां प्यास बुझायेगा वही तो सबसे खारा है ।
सबको याद आएंगे वो लम्हां मंजर जहां जहां गुजारा है
उस खंजर को कोई कहां छुपा सकेगा साथी अंत में
जिसने जिसपे उसने कई शख्सियतों को छुपके मारा है ।
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