पतंग सा उड़ता मन
आसमान में लहराए
ढील देकर जो खींचे
ऊँचाइयों में उड़ जाए ।
केवल ढील जो मिलती
होता आंखों से ओझल
पल- पल उड़ता चंचल
हवाओं संग हो जाए ।
मजबूती से जो खींचोगे
टूटकर वह बिखर जाए
दौड़ोगे जब तुम साथी
चक्कर खाता गिर जाए ।
दूर ऊंचा गगन उड़ता मगन
उड़ानेवाले का भी है लगन
जिंदगी भी है उड़ता पतंग
प्रेम, विश्वास, धैर्य के संग ।
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