उसे यूँही नही कहते है उम्रदराज
उसके पास हैं बहुत सारे राज
पूछोगे जाकर तभी तो बताएगा
न पूछोगे तो समझ कैसे आएगा ?
उसके बाल युहीं नही हुए हैं सफेद
समझो उसके आप क्या है भेद ?
बहाया है इसके लिए अपना स्वेद
पाया गुढ़ रहस्य अंतर्मन को भेद ।
घाट- घाट का पानी वह पी चुका है
मर- मर के कई दफे वो जी चुका है
जीवन – मृत्यु हैं उसके लिये उत्सव
पी लिया मेहनत से कर्म का आसव ।
उसे यूँही नही कहते हैं उम्रदराज
बहुत हैं जीवन जीने के साज
हर वक्त जूझने वह रहता तैयार
क्या जीत क्या हार सब त्योहार ।
आईना है वह, है तजुर्बे की खान
खुदको खोदकर पाया है इंसान
दिन या रात हैं उसके लिए समान
भीड़ से अलग बना चुका पहचान ।
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