एक मोची था। वह जूते बनाता था एवं पालिश करके उसे बेचकर अपनी जीवन चलाता था। पर वह एक समझदार व्यक्ति था । उसने अपने बेटे को अच्छी तरह से पढ़ाया – लिखाया । एक वक्त ऐसा आया कि उसका बेटा आगे पढ़ाई करने हेतु पैसों की कमी की बात अपने पिताजी को बताया । उसके पिताजी ने कहा बेटा तू उसकी चिंता मत करना मैं तुम्हें और पैसे भेजूंगा पर पढ़ाई जारी रखना, फिकर मत करना मन लगाकर अपने सपने पुरा करने की सोचना। वह दिन- रात एक करके खूब पैसा जोड़ता और पैसा भेजता । एक वक्त ऐसा आया कि उसने अपने घर की छत पर पर लगे खप्पर निकाल कर बेंच दी एवं उसके जगह पैरा लगाकर उस पैसे को अपने बेटे के लिए भेज दिया । अंततः उसका मेहनत रंग लाया और उसका बेटा डिप्टी कलेक्टर बन गया । राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में वह चयनित होकर उस मेहनत की श्रेष्ठता का परिणाम दीया । बहुत दिन बाद एक बार गांव से उसके पिताजी अपने बेटे से मिलने उसके यहां गए । उसके घर में उसके बहू नाती पोते के साथ रहा, कुछ दिन बिताया । एक बार उसके मन में यह भाव जागा कि लोग मेरे बेटे को बड़ा आदमी , बड़ा साहब बन गया है बोलते हैं , वह ऑफिस में कैसे काम करता है ? उसको ओहदा क्या है ? जरा देखूं वह आदमी गांव का रहने वाला सीधा साधा इंसान था । वह अपने बेटे के ऑफिस पहुंच गया तभी उसकी पहली मुलाकात एक आदमी से हुई, उसको अपने बेटे का नाम लेते हुए उससे मिलने की बात कही पीयून ने उसे पूछा वह उसका पता बता दिया पीयून आगे जा रहा था बताने तभी रास्ते में कलेक्टर महोदय किसी काम से बाहर आए थे वे अपने केबिन में जा रहे थे कि उन्होंने उस सीधे-साधे व्यक्ति को देखकर पूछ बैठे कि आपको किससे मिलना है । उसने अपने बेटे का नाम लेकर बताया कि मैं उनका पिताजी हूं । उनको देखकर कलेक्टर महोदय को बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक गांव का व्यक्ति अपनी बेटे को इतना पढ़ा-लिखा कर काबिल इंसान बनाया है उसको सोच उन्होंने उसकी आप-बीती पूछी । वह अपनी संघर्ष की पूरी कहानी बताया । वह एक मोची था और कैसे उन्होंने संघर्ष से जिंदगी की जंग जीत कर अपने बेटे को भी विजयी बनाया है ।
ऊपर चढ़कर डिप्टी कलेक्टर महोदय के पास जाकर कहा कि आप से नीचे कोई मिलने आया है बाहर आकर उसके बेटे को उसके पिताजी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने पूछा वह कौन है ? उसके बेटे ने उत्तर दिया वह हमारे घर का नौकर है । यह बात उसके पिताजी ने सुन लिया, मानो उसके पैर से जमीन खिसक गई और जिंदगी एक पल के लिए ठहर गया और सब उसके चारों ओर सन्नाटा छा गया और वह मूर्छित हो गया तभी कलेक्टर महोदय और उसके बेटे एवं अन्य सभी लोग वहां दौड़ते हुए आ गए । पानी का छींटा मारकर उनको मुर्छा से जगाया कलेक्टर महोदय को आगे से सब मालूम था उनको देखकर उस महान व्यक्ति के आंखों में आंसू भर आ गए। उसके बेटे को उसने छूने से मना कर दिया निःशब्द होकर। इतना अपमान कोई कैसे सह सकता है । कलेक्टर महोदय ने उस डिप्टी कलेक्टर को खूब डांटा और कहा आप कैसे व्यक्ति हो ? जिसने आपको इतना बड़ा आदमी बनाया उस महान पिता को आपने अपना नौकर बताया कितनी शर्म की बात है । उस पिता के होठों पर अब कोई शब्द न थे उनका शरीर शिथिल हो गया था, मुख में उदासी छा गई थी।
उस महान व्यक्ति ने अपने घर जाने हेतु बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला और एक बार अपने बेटे की ओर देखा, वह बेटा अब शर्म से गिर चुका था। अब अपने पिता को इस हालत में देख कुछ कर भी ना पा रहा था । बाप और बेटे ने एक दूसरे को देखा सब उनको देख रहे थे । तभी पांव आगे बढ़ाया और दो कदम चले थे कि पांव लड़खड़ा ने जैसे हुए तो सब उनको पकड़ने के लिए हुए पर उन्होंने अपने हाथों से सब को मना कर अपने को संभाल लिया और जाने लगे कलेक्टर महोदय ने दौड़ के आगे जाकर ऐसे आप कहां जा रहे हो पिताजी आप हमारे घर चलिए मैं आपका बेटा तो नहीं हूं पर बेटा से कम तो भी नहीं हूं उस व्यक्ति की आंखों में आंसू की धारा बह चली जैसे धीरज का बांध अब टूट गया है जिसे बांध पाना मुश्किल है । उन्होंने कलेक्टर साहब के कंधे में हाथ रख के दबाया और मौन रुकते हुए उनके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गए पूरा माहौल एकदम शांत था । कलेक्ट्रेट परिसर पूरा उस महान कर्मठ व्यक्ति को देख रहा था । किसी में इतनी हिम्मत ना रही कि उन्हें कोई रोक सके, सबके दिल में दर्द हो रहा था। यह क्या हो रहा है ? कैसी घटना घट गया यहां ? सब दुखी थे ।वह महान व्यक्ति एक रिक्शा में बैठकर चला गया सबके मन आहत थे । उसकी बेटे के लिए कुछ लोगों ने कहा जो अपने बाप का नहीं वह किसी का नहीं हो सकता । इस कहानी को सुनके हमारे मन में भी उस पिता को नमन करने का मन किया और नमन किया जी भरके। बस उस बेटे के लिए क्रोध भी आया । व्यक्ति जात पात या जन्म से महान नहीं होता अपने कर्मों से महान बनता है । अपने व्यवहार , आदर्श व मूल्य विचारों से महान बनता है ।
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