वक़्त / Waqt

हमने मांगा था वक़्त उसे फुर्सत में

उसने याद  किया  हमें रुखसत में

कैसे  कहें जमाने को अल्फ़ाज़ से

जल  रहें  हैं  हम  किस  आग  से ……..

 

अब अंधेरा नहीं मन के  कोने में

पर चैन भी नहीं आता है सोने में

पाने  की  हसरतें  अब  नहीं रहीं

मजा आ रहा है सबकुछ लुटाने में …….

 

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