धवांत का अंत होने को सवेरा
चह चहाने लगा चिड़ियों का बसेरा ।
क्षितिज पर खिंच गई लाल रेखाएं
सरोज सरोवर में अब मुस्काए ।
मिलिंद फूलों से बातें करता
चुपके-चुपके मकरंद चुराता ।
भूमि पुत्र ले बैलों का जोड़ा
वसुंधरा पर श्रमवारी निचोड़ा ।
फसलें सुरभि से लहराती
यह मनोरम दृश्य लुभाती ।
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