Sanket

नदियां क्यों सुख रहे ?

आसमान धरती काला

पशु- पक्षी विलुप्त हो रहे

छिनता सबका निवाला ।

 

ताप सदा बढ़ता चला है

ध्रुवों का ग्लेशियर है संकेत

मानव क्यों है ? अब अचेत

हो जाओ तुम जल्दी सचेत ।

 

मानव  अब  तुम  अपनी

कथनी करनी पर करो गौर

आएंगे ऐसे ना जाने कितने

लहर मानवता पे ढाये कहर ।

Comment

There is no comment on this post. Be the first one.

Leave a comment