समझा नहीं क्यों किसी ने हमको ?
या समझा नही है हमने उनको ?
सोचके ये दिल में दर्द होता है
ऐसा भला क्यों ? होता है
समझा नही …
शिकवा किसी से क्यों ?
शिकायत किसी से क्या ?
जिसे अपना समझा
वो पराया है बनाया
समझा नहीं …
ऐसी क्या मजबूरी होगी ?
सोचा न था हमने
कभी ऐसी दूरी होगी ?
तन्हा – तन्हा लगता सब कुछ
दिल मेरा रोता है
समझा नही …
समझ न पाए हम आँखों की भाषा
कैसे बताएँ किसको मन की अभिलाषा
क्यों कोई हमको पढ़ नही पाया
या हमें उनको पढ़ना नही आया
सोचके ये दिल बेचैन होता है
समझा नहीं …
कोई समझले हमको
हम भी उनको जाने
लिखेंगे मिलके हम
जिंदगी के अफ़साने
ढूंढती हैं निगाहें अपनी
कहलाते हैं दीवाने
समझा नही …
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