सबरंग हमारे अपने हैं
रंगों की है अपनी बातें
जीना हमको हैं सिखलाते
भेदभाव न करना बतलाते
सभ्य तो बन गए पर मानव
रंग भेदी हो जाते हो क्यों ?
रंगों को देख मिलकर कैसे ?
सब खुदके रंग भुल जाते
बिखरते हुए वर्णक्रम में यह
दिखलाते इंद्रधनुष की छटा
मानव इसमें क्या कुछ घटा ?
कहीं कुछ क्या कटा- फटा ?
सभ्य तू जरा सोच सदा
समझ- समझ कर बता
सब रंगों से सीखा क्या ?
रंगों की ऐसी क्या बातें
भूल जाते है अपना अतीत
बन जाते शांति का प्रतीक
सभी को सिखलाते ये रीत
जगत में सबसे बड़ा है प्रीत
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