पानी था मैं ना कोई था रंग
लोगों ने क्या-क्या रंग डाला
रंग गए रंगों में ऐसे खुदका रंग भुला डाला
पानी था …
सूरज की किरणें हैं उजली
रंग भी रंग गए उस रंग से
उजाले में कुदरत ने क्या क्या रंग डाला
पानी था …
खुदा के ही हैं हम सब बंदे
चारों तरफ है फैला उजाला
रंगभेद क्यों फिर ? क्या गोरा क्या काला
पानी था …
यहां फूल कई पर रंग वही
कोई न गलत, हैं सब सही
रात – दिन में ही दुनियां सारा बसा डाला
पानी था …
प्रेम शांति का सन्देशा लाता
सूरज क्षितिज पर उग आता
जिसका है जैसा रंग सबका रंग वही दे जाता
पानी था …
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