मानव बन रहा है कृत्रिम
नित नए लगा रहा क्रीम
प्रकृति से करता छेड़छाड़
आते सुनामी भूकंप बाढ़ ।
अंधाधुन दोहन विकास का पैमाना
सतत् विकास को किसने माना
छाई उस पर है ऐसी माया
जान के खुद को अनजान बनाया ।
ढोंगी सोने वाले को कौन जगा सका
वह न जागा है ना सोया है
इतिहास गवाह है जिसने ढोंग रचाया
वही बाद में सिर पीठ पीठ के रोया ।
प्रकृति तुमको करती सचेत
मानव अब तुम जाओ चेत
चारों तरफ होगी हाहाकार
प्रकृति भरेगी जब हूंकार ।
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