विचारों की दरिया बहा अंदर
तूफानों को उठा बनके समंदर
कूव्यवस्था बदल बनके बवंडर
सुहाना लगे सबको सारा मंजर।
बेफ़िक्र ना हो मरदूम-आजार 1
चलाओ सुल्तानी- ए- जमहूर 2
है दौरे- जमां 3 का ये फ़रयाद
ज़मीर से ही उठाओ जज़्बात।
फ़रेबो के ना कोई बाजार हो
सभी सच के सारे त्योहार हो
महरूम ना हो खुशियों से कोई
ऐसा मजलिस4 का इंतजाम हो ।
- मरदूम-आजार = मनुष्य को कष्ट पहुँचाने वाला, जालिम
- सुल्तानी- ए- जमहूर = प्रजा का शासन
- दौरे- जमां = संसार का चक्र
- मजलिस = सभा
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