पेट की चिंता अंतड़ीयों में नहीं है बल
ना कपट है ना किसी से छल …….
चिंता आज की है सोचा किसने कल
इस समस्या का ढूंढता रहता मैं हल ।
सब कुछ देखते देखते बनने लगी
माथे पर अनुभव की कई रेखाएं
बाल धूप में यूं ही सफेद नहीं हुए
खेलता रहा जिंदगी के कई जुएं ।
हार – जीत तो है बस एक बहाना
आधी हकीकत है तो आधा फसाना
इसी में जिंदगी का सारा अफसाना
मिलके खेलके पढ़के समझते जाना ।
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Literature PoemMarch 14, 2021
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