Pani ka lota | पानी का लोटा 

brass-colored mug with sliced lime

पुरखों की संस्कृति हमारी जीवन होती है । वह जीवन की उहापोह की स्थिति में मन की किंकर्तव्यविमूढ़ता के भवर से बाहर आकर सही निर्णय लेने में हमारे अंतस को सशक्त बनाती हैं । सुबह का समय था , सर्द कि मौसम करीब 8:00 बजे की गुनगुनी धूप में राजेश अपने पूर्वजों का गांव कंचनपुर तंग गलियों से होते हुए बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते पहुंचा । अपने पुरखों का घर जहां पर उन्होंने अपने सपनों को साकार किया व संजोए रखा था । उसके पिताजी के एक चाचाजी यहां रहते हैं। उनका एक ही बेटा है। राजेश के पिताजी के चाचा एक कलाकार थे, आंचलिक रूप से उनकी बहुत बड़ी ख्याति है । राजेश के बड़े पिताजी के दो बेटे एवं दो बेटी हैं , सब की शादी हो चुकी है छोटे भाई की शादी अभी- अभी हुई है। वहीं पास में ही एक जगन्नाथ मंदिर है जो मन को शाश्वत एवं सत्य से प्रतिबिंबित करता है । मंदिर के घंटी की मधुर ध्वनियां आत्मा को गुंजायमान करती हैं। अंतरात्माओं को कंपित कर मूलता को उद्भेदित करती है।  बड़े प्यार के साथ राजेश बच्चों के लिए कुछ लेकर घर की दहलीज पर पांव रखा पर कहीं भी बच्चों की आवाज आज नहीं सुनी , माहौल  एकदम शांत था। बीच आंगन में पहुंचकर जब वह भाभी कहकर आवाज लगाई तभी दो तरफ से उसे हां की आवाज सुनाई दी , उसके दोनों भाभियों के हाथ में पानी का लोटा है। सहसा उसने देखा दो चूल्हे में धुआंएं उठ रही हैं, अभी धधकी नहीं है । एक पल के लिए राजेश स्तब्ध रह गया तभी उसे ऐसा महसूस हुआ कि क्या आप लोगों ने मुझे भी बांट लिया है।  पानी का लोटा उस वक्त राजेश कैसे पकड़ता क्योंकि उसके आंखों में वह धार बन गई थी जिसको अंतस में छुपाकर वह मन में सोचते हुए रह गया । अपने दिल को बांटते वह हक्का-बक्का रह गया।  उसके होश हवास एक पल के लिए उड़ से गए थे। तभी उसकी बड़ी मां घर के बाड़ी की तरफ से आई और एक खाट लाकर आंगन में रख दी । राजेश उनको प्रणाम कर मन में सोचते हुए रह गया। उसकी बड़ी मां को उसकी मनोदशा समझते देर नहीं लगी वर्षों की अनुभव जो उनके पास है, उन्होंने उसे बताया कि यह जीवन का परम सत्य है बेटा आज नहीं तो कल बटवारा होना ही है । पहले ही शांति से दो प्रेम की धाराओं में बट कर समाज में बहना उचित है । धाराएं तो दो हैं पर नदी तो नहीं है , जल शाश्वत है चाहे वह जहां भी हो जिस रूप में हो यह बात राजेश के लिए ज्ञान की एक नई धारा थी जिससे वह अनभिज्ञ था । उस वक्त उसके मन में संदेह की लहरें हिलोरें मारती रही जिससे वह रात भर सो नहीं पाया वही कुछ दिन वह सोचता ही रह गया कि यह कैसे किया उसकी बड़ी मां ने ।  पर उसके पास इंतजार के अलावा कुछ न था । कई परिवारों को उसने कलह  एवं द्वेष से हमेशा के लिए एक दूसरे से अलग होते देखा था।  जो विपरीत परिस्थितियों में भी साथ ना आ पाए ,  जिनकी एकता की मिसाल दी जाती थी । जिन्होंने सदैव एक साथ रहने की कसमें खाई थी , वादे किए थे, वे  आज बिखरे पड़े नजर आते हैं ।  कितनी  सहजता एवं शांति से यह बातें बड़ी माने समझी एवं अपनाएं है । आज सब खुश है, अब उन्होंने जिम्मेदारियां स्वयं से उठाई भी हैं । खुशियों , पर्व का समय हो या विपरीत परिस्थितियों का सभी मे वे एक होकर जीवन जीते हैं। वह जीवन की धाराओं में गतिशील है, यही प्रगति का सूचक भी है । वह  बात उस समय राजेश को अटपटा जरूर लगा था पर आज उसकी अहमियत का पता चलता है उसे।    

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