मेरा उमर है पचपन
याद आता है बचपन
याद है वह मस्ती की टोलियां
खा रहा अब बी.पी. की गोलियां
हंसता बचपन का वो बचकाना सूरत
घर के कोने में आज बन बैठा मूरत
मन में न कोई सपना था
पर सारा जहां अपना था
नहीं जानते थे जीने का सलीक़ा
खोज लेते थे खुशी पाने का तरीका
ना दौलत थी न शोहरत था
सब कुछ अपना हसरत था
तितलियों सा रंगीन था दिन
जुगनूओ से जगमग थी रातें
अब है आह से भरी रातें
किससे करुं मैं अपनी बातें
रोज घरोंदे बनाके मिटाते रहते
सब कुछ भूल जाना फितरत था
यादों से अक्सर अब नींद नहिं आती
रात स्याह भी कई रुप दिखाती
मेरा उमर है पचपन
याद आता है बचपन
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