पास तो आ …
कुछ गुफ्तगू कर
मौत से यू ना डर
वक्त मौत के पाले में है
यह खेल बहुत पुराना है
वक्त का क्या ? आना है
फिर जाना है ……
क्या रखा बहाने में ?
सब कुछ आजमाना है
पास तो आ ……
पास तो आ …
कुछ गुफ्तगू कर
मौत से यू ना डर
वह मजा कहां किसी में ?
जो मजा मुस्कुराने में है
यूं तो बातों से समझाता है हर कोई
पर वह हुनर हर किसी के पास नहीं
जो आंखों से समझाने में है
आंखों में कायनात है पूरी
हसरतें पूरी कर जाना है …..
पास तो आ …
कुछ गुफ्तगू कर
मौत से यू ना डर
जो मजा है इशारों ही इशारों में
सब कुछ कह जाने में
शब्दों से बोलने में कहां है
आज भी उस लम्हां को बार बार याद करते हैं
क्या था और वो चेहरे के भाव से समझाने में
आंख जो मुंदोगे तो पास आते हैं
आंख मूंदकर ही जाना है……
पास तो आ …..
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