Niyaay kahin hamko mil jaay

 

 

कितने चक्कर हमने लगाए 

न्याय कहीं हमको मिल जाए 

बहस बहुत अब चलने लगी है 

सोच कर मेरा दिल घबराए 

न्याय कहीं हमको मिल जाए 

 

चेहरों पर है कितने मुखौटे 

आंखें देख के हैं पथराए

बिकते हैं रिश्ते इतने सस्ते 

देख के यहां मेरा मन थर्राए 

न्याय कहीं हमको मिल जाए 

 

तारीखों पे यहां बदलती किस्मत 

जाने क्या-क्या ? पल में हो जाए 

उम्मीदों पर टिकी है यहां दुनिया 

करिश्मा कभी कुदरत का हो जाए 

न्याय कहीं हमको मिल जाए 

 

काला से उजाला दिखता कम 

उजालों में ज्यादा दिखता काला 

हंसते है कितने अन्याय के चेहरे 

न्याय की उम्मीदों का दम घुटता 

न्याय कहीं हमको मिल जाए

Comment

There is no comment on this post. Be the first one.

Leave a comment