विध्वंस में निर्माण है निर्माण में विध्वंस
कोई तो है, कहीं तो है, कुछ तो है अंश
सबकुछ बहाव में है, कुछ ठहराव में है
दुनियां को जो जानता है वो अभाव में है ।
सच को खोजने ही तो आए हैं
मृग मरीचिका है यह दुनिया
सत्य, प्रेम, दया, त्याग है ओज
रोजमर्रा में ही हो रहा है खोज ।
कोई जाति में फंसा है कोई रिवाजों में फंसा है
तो कोई अपने ही अंदर के दरवाजों में फंसा
जिसने बनाए रास्ते अलग वही कसौटी में कसा है
कुछ भी करो अनोखा तो पहले जग ने ही हँसा है ।
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