नेताओं को भीड़ पसंद है, जनता को नीड़ पसंद है
पसंद- पसंद में ही सारा चुनाव का मामला गड़बड़ है
निकलो नीड़ से पहुँचो भीड़ तक आया है कोई नेता
भाषण हमें नहीं सुनना पूछना बस क्या- क्या समेटा ?
क्यों अब तक जनता को उसने भाषणों में ही लपेटा ?
क्या किया ? क्या नहीं किया है ? पूछले उसको बेटा
आ गई फिर चुनाव की रणभेरी मैदान में जो वो उतरा है
कहां बैठे थे अब तक वे ? उसने क्या – क्या कुतरा है ?
सड़कों में नहीं चलता क्या ? मालूम नहीं उसे उसका हाल
जनता हाफके खांस रही है जी का बना यह कैसे जंजाल ?
हम से बना हमी को लूटा जनता बनी है हरदम कंगाल
क्या था पहले ? क्या है अब ? कैसे बना वो मालामाल ?
आसमान में उड़ चला है वह नीचे सबका हाल बेहाल
थे पाँच साल उसके पास भी क्या किया ऐसा कमाल ?
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