तपे आग में नित हाव-हाव
रंग लाल हो बनता स्वभाव
रक्त तप्त लोहे पर बार-बार
जब प्रहार करता लोहार
आति हरियाली का त्यौहार ।
माटी को रौंद-रौंद जल डार
चाक पे रख दे नव आकार
बाहर भीतर मारे कुम्भहार
बनता कुछ नया आकार
जग, जीवन होता साकार ।
गूंजता अत्याचार, अनाचार
चारों तरफ होता हाहाकार
उठे अंतरात्मा की चीत्कार
लेता फिरसे नया अवतार
होता पीडितों का उद्धार ।
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