उत्तुंग शिखर बीहड़ नीरव
होता उद्गम मध्यम- मध्यम
आगे बढ़ना सीखा चलना
उतरा प्रबल कर कल- कल ।
भरी जवानी मैला- कुचेला
बिखेरा किनारे गाद- गाद
जल निर्मल हो शीतल
फसल होते रहे आबाद ।
टेढ़ा – मेढ़ा रास्ता अख्तियार
परवाह नहीं कोई ओर- छोर
हो शांत गंभीर कहीं जोर-शोर
बहता रहता नित भाव विभोर।
कितने जीवन पलते अंतस
जाने क्या- क्या समाया ?
कहां से आया कहां जा रहा
क्या खोया ?, क्या पाया ?
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