जो आदि शक्ति का मूल है
जीवन भी उसका फूल है
पूर्णता का वह देती निमंत्रण
गिरता उठता जिससे कण-कण ।
जीवन बन जाएगा दर्पण
करो उसे सब कुछ समर्पण
जो रूप लेने के पहले था
उसकी सुने संसार कथा ।
जो आधार है सबके मूल का
जो सुधार है सबके भूल का
जिसमें सब मिट जाते हैं
उसी से फिर उठ जाते हैं ।
वही शक्ति है जीवन-ज्योत
वही मां है, वही मूल स्रोत
कृति के भी जो पूर्व था
खोजो वह क्या अपूर्व था ?
महर्षि मुनियों का है जो ध्यान
विज्ञान से गहो उसका ज्ञान
वसुधा को अपना कुटुंब जान
स्वार्थो का मत कर समाधान ।
जो है सदा सब की श्रोता
हो ना हो साथ वही होता
निर्माण उसी से होता है
विनाश उसी में सोता है ।
दूर हो रहा है जग उसे आज
जाएगा कहां मानव समाज ?
वह जब करेगी एतराज
तभी समझेगा क्या समाज ?
दे दो मूल्य उस पोषण को
जो रोक देगा शोषण को
आओ ध्यान उसी का धरते हैं
हरियाली से सब भरते हैं ।
बना रहे तत्व का संतुलन
ना हो किसी को भी जलन
विज्ञान में यह ज्ञान जोड़ो
कृत्रिमता की ये हठ छोड़ो ।
प्रकृति का है यही कहना
अपनी जड़ों से जुड़े रहना
खोपड़ी के फिक्र में जो खोए
विनाश के बीज फिरसे बोए ।
जब प्रकृति न्याय करती है
सच है पहले हुंकार भर्ती है
देती है वह सबको अवसर
जो सुधार करने को है तत्पर ।
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