मयखाने में बैठे
मय औऱ मीना
साथ में पीना
बैठने सोचे ………
क्या है जीना ?
क्या है मरना ?
अब किसी से
क्यों है डरना ?
मयखाने में ………
मयखाने में ……
न होता केवल पीना …..
गम भुलाता ……..
खुदको सिखाता
सीखता है फिर कैसे जीना…… ?
खोये अरमानों को
खोजने आता ….
मन बहलाता
खुदको समझाता
मयखाने में ………….
क्यों है इतनी मारामारी ?
ये सब क्या है दुनियादारी ……?
क्या चीज है …..?
जो सब पे है भारी…..
क्या चीज है यह जिम्मेदारी…… ?
जिसको ना समझा …..
है क्या ये बीमारी ?
मत ना हावी होने दे
खुद पर लाचारी …….
मयखाने में………
मयखाने में ……
बैठे कुछ पाने में
उतरते हैं गहराइयों के ….
हम पैमाने में ……..
नापते खुदको
हम कहाँ हैं ? क्यों हैं ?
वजह क्या है इसकी ?
खुदको ठहराने में ….
मयखाने में ………
डूबे बिन पार कैसे हों ?
आज आये सोचने हम
मयखाने में ……….
खुदको परखने आजमाने में
आये हम तो हैं
मयखाने में
नए लोक के सैर पे जाने में
बैठने आये हम हैं……..
मयखाने में ……..
खुदकी गहराइयों में …….
डूब जाने में
आगये हम तो ……
दुनियां कहती है
बुझ गए हम …..
आये हैं यहां हम ….
खुदको जलाने में ……
जिंदा हैं हम अभी भी
दुनियां को ये बतलाने में…… ..
दुनियां ने समय क्यों गवाई?
वक्त क्यों बिताई ?
हमको बार -बार आजमाने में
सोचने हम तो बैठे मयखाने में
मुस्कुराई दुनियां ये बतलाने में …..
बैठे हैं जनाब देखो
क्यों ? मयखाने में
पूछो हमसे खुलकर तुम
क्या रख्खा है शर्माने में
आओ बैठो भी मयखाने में ………..
मयखाने में आया हूँ
कोई ऐसा आईना दिखा
आज मैं खुदको देखने आया
उतरके पैमाने में
सब मुखौटे उतारकर
असली नकली का भेद पाने
खुदको फिर से आजमाने
घेरे से बाहर देखने…….
आया हूं कुछ नया देखने
मयखाने में……….
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