अरे भाई खुदा तो मिलता है खुदाई में
फिर क्या रक्खा मज़हब की लड़ाई में।
चूल्हे में आग जलती है तभी घर चलता है
पेट में आग लगती है सबका जी मचलता है।
तपे आग में इतना की बहना ही था
देखे आंखों से इतना कुछ कहना ही था।
सोना सिखलाता है कैसे तपके और निखरना
सीप सीखाता है अंतस में कैसे मोती बनाना ।
बदले की आग में लोग दूसरों को जलाते हैं
खुद भी जलजाते हैं ।
उनको ये पता ही नहीं चलता
वो कब कैसे गल जाते हैं।
मन में जो भी आया सब लिख डाला
वक़्त जब भी मिला खुदको खंगाला
यादों के लू चले, कभी वर्षा की झड़ी
भाप बनके जिंदगी परीक्षा लेने खड़ी ।
लोग दूसरों के घरों में झांकते हैं जिस क़दर
कभी खुद को ऐसे झांक लिया होता ।
माज़रा कुछ और होता यहां
कभी खुदको आंक लिया होता ।
दोस्ती है विकास का पैमाना
जिसने इसको समझा ,
ग़म क्या उसे कुछ खोने को
दोस्तों ने है उसको जो समझा ।
उतुंग शिखर, बीहड़ नीरव
होता उदगम , मध्यम- मध्यम
आगे बढ़ना , सीखा चलना
उतरा तेज प्रबल, कर कल- कल ।
भरी जवानी मैला कुचैला
बिखेरा किनारे गाद
जल निर्मल हो शीतल
फसल हुए आबाद। ।
नफ़रत के बीज मत बोओ फसल बहुत बर्बाद होगा
रोने को भी आंसू कम होंगे दामन इतना दागदार होगा ।
काले रंग पे ही सारे सपने उजाले किये
गुरुजी ने जलाये अंतस में ज्ञान के दिये।
धर्म के साए में अधर्म को जब प्रश्रय मिलता है
तब तो यकीनन हमको सबसे ज्यादा खलता है ।
असफलता -सफलता है निरंतरता
कर्म के वृक्ष में ये फूलता – फलता ।
तपिश ना होती तो ये बारिश की बूंदे से कन्हा आती
संघर्ष ना होता तो जीवन की ऊंचाइयों पे कौन होता।
जो खुद मां है
वो भी मां ढूंढती है
सोचो मां क्या होती है।
अंधेरा जब हो घनघोर विकट
होने को सवेरा तब हो निकट।
मन में आशाओं के दीप जलाएं
उजिराये को हरदम फैलाएं ।
अरे भाई खुदा तो मिलता है खुदाई में
फिर क्या रख्खा मज़हब की लड़ाई में ।
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