बड़े प्यार से ईंट – पत्थरों को सजाया
घर दिखाने को हमें है सबने बुलाया ।
कैसे-कैसे है हमने पत्थरों को सजाया
लोग कहते हैं हमने एक घर है बनाया।
कोई जाकर यह बता दो उन्हें
देख के हम हैरान, परेशान हैं ।
घर के लोग एक दूजे से अनजान हैं
घर लोगों से बनता, न उन्हें भान है ।
घर से लोग हैं लोगों से है घर
बहुत कम है घर आती नजर।
घर के लोगों के मन में अब दीवार ही दीवार है
उनको मालूम ही रहता नही कौन उस पार है।
अपने ही घरों में उलझे लोग यहां
किसके घर देखने मैं जाऊँ कहाँ ।
देखते देखते कितने घर बिखर है गए
घर के लोग जाने कैसे? कहां? चले गए ।
घर की बुनियाद को घरके लोगों ने हिलाया
मीरा जोगन हुई उसे अपनों ने विष पिलाया ।
राम – लक्ष्मण को देखो घर के लिए कैसे वन को चले
पिता के वचन को निभाने के लिए, जो थे महलों में पले ।
ना शिकन थी कोई , ना कोई था शिकवा उन्हें
एक वचन के लिए हंसते-हंसते वन की राहें चुने।
मां ने पूछा नहीं कभी अपनों से भी
आन पड़ी यह कैसी विपदा की घड़ी ।
मां के वचन है कटु फिर भी वरदान है
राम- लक्ष्मण को घर पर अभिमान है।
भाई है एक भरत चला लेके प्रेम रथ
भ्राता राम को मनाने सुने महल को घर बनाने।
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