अभाव में ही बनता स्वभाव
जीवन से ना हो अलगाव
निज अंतस में जला अलाव
आत्मशक्ति को दे फैलाव ।
इंद्रियों को कर संगठित
विपत्ति से न हो विघटित
बारम्बार कर प्रहार
सपनों को कर साकार ।
मुसीबतों में तू निखर
लगा अपनी बुद्धि प्रखर
ढूंढ नित नव अवसर
दिखा जौहर कुछ नया कर ।
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