Kisaan | किसान

woman in white shirt and blue denim shorts holding white plastic bucket on water

किसान

 

जीवन में मौसम की मार

कभी लू के थपेड़े

सावन की बौछार

लाती हरियाली का त्यौहार । 1

 

अल्पवृष्टि, अनावृष्टि ,अतिवृष्टि

सब में है जीवन के अभीव्यक्ति

अनावृष्टि धरा सा ह्रदय विदीर्ण

जीवन है जीर्ण शीर्ण

मिट्टी पर गाथा उत्कीर्ण । 2

 

अतिवृष्टि बाढ़ सा बह गया

खोजता फिर कहां आ गया

प्रकृति से जूझता सहता प्रथमाघात

सूखा, बाढ़ ,चक्रवात, अकाल

झंकृत होता हाड़ – कंकाल

आपदाएं होती जब विकराल । 3

 

गांव गांव धूप छांव

खेलता रहा सदा दांव

हार जीत बन गया मीत

प्रकृति की अपनी रीत । 4

 

हाँथ न आता तब कुछ

दुष्कर हो जाते हालात

ऋण से उऋण कैसे होऊँ

आता नहीं कुछ समझ । 5

 

मुखातिब हुआ जब से सूखा

अपनों को मरते देखा भूखा

खाया हरदम रुखा- सुखा

बना रहा सदा अन्नदाता

कौन है मेरा भाग्य विधाता । 6

 

फसल बर्बाद करते कीट पतंग

लड़ता रहता अंजाना सा जंग

भरता खुद से किस्मत का रंग

वसुंधरा के गर्भ से अपने कर्म से

जीवन का बीज सदा बोता रहा । 7

 

हिम्मत कभी खोई नहीं

तूफानों से लड़ता रहता

लहराते फसलों की देखा बाली

सजाता रहा हूँ सब की थाली

यही है मेरी होली – दीपावली । 8

 

सहसा होती ओलावृष्टि

सब कुछ ठंडा हो जाता

अश्रुजल बहता जाता

दुश्मन मेरी अनजान है

क्या करूं यही पहचान है । 9

 

प्रकृति से करता हूं प्यार

रहता उसका हर वार

अन्नदाता कहते मुझे सभी

देना ही जीवन का सार ।  10

 

फंसा हूं अपनों का माया चक्र

खुद पर करूं कैसे फक्र

कारपोरेट की दृष्टि है वक्र

अब वो बीज देते हैं मैं बोता हूँ

उनको पता है क्या सरकार ?

मैं हंसता हूँ कि रोता हूँ ।  11

 

सेंसेक्स की उछाल का क्या ?

बैल मेरा लड़खड़ाता  रहा

जान धरती पर लड़ाता रहा

जीत हार ना मुझे स्वीकार

लड़ता रहा मुस्कुराता रहा

समझोगे तो बताना मुझे भी

कहाँ मात सदा खाता रहा ?  12

 

समय जाता रहा सदियां बीती

समझा कौन मेरी आपबीती ?

अंग्रेज आये ,रहे और गये

क्या मेरी दशा- दिशा बदली ?

इस जद्दोजहद में आज भी हूँ

बच  जाये दो जून की रोटी ।  13

 

 

 

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