अंकुरित हो बाहर आए
कर्म के जो बीज बोए
कलियां कोपल निकली
हम सब फूले न समाए
हर कली खिली खिली
झूले भौंरे और तितली……
बन गए फल धर्मों के
बीज निकले कर्मों के
कर्मों की है पहेली
खुशियों से खेलना
खेल सा सांप सीढ़ी
खेला है पीढ़ी पीढ़ी……..
कर्मपथ नहीं आसान
चुनौती है पग पग में
खोजना है समाधान
सिलसिला ऐसा चला
जुड़ती जाए कड़ियां
बीतता जाए घड़ियां……..
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