कल्पना का जो स्थान विज्ञान में है वही स्थान हमारे जीवन में भी है। कल्पना से ही हम सत्य का साक्षात्कार करते हैं । कल्पना सकारात्मक भी हो सकती है तो नकारात्मक भी , परमाणु बम को बनाने वाले ने भी कल्पना की है तो नाभिकीय रिएक्टर बनाने वाले ने भी, दोनों ने कल्पनाएं की पर उनके दृष्टिकोण में अंतर है इसीलिए परिणाम भी अंतर को व्यक्त करता है।
एक कहावत है जहां चाह है वहां राह है , इस कथन में कल्पना ही सार है। जब हम अपने लक्ष्य को लेकर उसको पाने की कल्पना करते हैं , उसको जीते हैं, उसको महसूस करते हैं तो वह खुद-ब-खुद रास्ता बनाने लगती है । मनोविज्ञान भी यही कहता है , हम जैसा सोचते हैं वैसा बन जाते हैं। यह पूरा संसार कल्पनाओं का ही यथार्थ रूप है , इसीलिए भारतीय दर्शन में कल्पवृक्ष को स्थान मिला है । हम कल्पना से हि यथार्थ तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते चले जाते है । विषम परिस्थितियों में हम कल्पना से हि हठ योग को साकार करते हुए सकारात्मक सोंच से टीके रहते हैं, उससे लड़ते रहते हैं।
किसी ने आसमान में उड़ान भरने की कल्पना की और वायु यान मिला तो किसी ने अंतरिक्ष में जाने को कल्पना से साकार किया । सारा विज्ञान का चमत्कार कल्पना की नीव पर ही टिका है । इसी तरह हमारा जीवन भी कल्पनाओं का यथार्थ रूप होता है । हम कल्पना की शक्ति से ही उड़ान भरते हैं । जीवन में कल्पनाओं से ही लोगों ने अपने सपने को साकार किए हैं, वही गलत कल्पनाओं से लोग राह भी भटक गए । आपका जीवन आपका वर्तमान, भूत, भविष्य आपकी कल्पना ही है। जब हम स्वयं कल्पना ना करके कार्य करते हैं तो हम दूसरे की कल्पना का अंग बन जाते हैं और दूसरे की सोच के अनुरूप बनने लगते हैं या बन जाते हैं । समस्त सृजन कल्पना का रूपांतरण से सार्थकता को पाता है। कल्पनाशील होना जीवंतता का परिचायक है । कल्पना वह जहाज है जिसे हम समस्त ब्रह्मांड का उड़ान भर सकते हैं इस संसार के अद्भुत रहस्य को जान सकते हैं ।
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