चुप नही रहूंगा
हर बार कहूंगा
एक बूंद हूं ….
कतरा बनके…
रगो में बहूंगा
चुप नहीं रहूंगा ।
मेरे चुप होने से
क्या सूरज नहीं उगेगा ?
अमावस की रात
सदा रहेगी क्या ?
क्या मैं सदा रहूंगा ?
जमीर से क्या कहूंगा ?
विचारों का दरिया हूँ
क्यों नही मैं बहूँगा ?
रोके मुझे कोई भी
रुकने को मैं ना रहूंगा
एक चिंगारी हूं मैं
दिया जलाके ही रहूंगा ।
एक हंसी हूं उनका
जो खुलके मुस्कुरा न सके
आंधी हूँ उनके लिए
जो कलियों को हंसने न दिया
उस चूल्हे का आग हूँ……
जहां केवल दो जून की रोटी पकती है ।
एक कश्ती हूँ उनका
जिनको जिंदगी ने डुबाना चाहा
एक सपना हूँ मैं
जिनके सपने छीने गये
एक आशा हूँ उनका
जो जिंदगी से हार रहे
किस बात का डर है ?
बस आना जाना है यहां
कर्म ही मेरा शज़र है
क्यों किसी की सहूँगा ?
जो सच है वही कहूंगा
मैं न सदा रहूंगा ……
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