हमेशा जिस्म के पार
तुमको वहां छूना चाहा
जहाँ तुम, तुम न थी
मैं, मैं न था
और हममें कोई और न था
न सुगंध थी, न प्यास था
न रीति थी, न रिवाज था
न तर्क थे, न जज्बात थे
सब कुदरत के सौगात थे
हमेशा जिस्म के पार
न समाज थे,न ही उनके आवाज थे
एक नयेपन से जीवन के आगाज थे
प्रेम के तराने थे हौसलों के परवाज़ थे
हमेशा जिस्म के पार
हमेशा जिस्म के पार. …………
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