Janadesh | जनादेश

man in black shirt reading newspaper

शाम के 7:00 बजे थे, हटिया- भुवनेश्वर सुपरफास्ट ट्रेन प्लेट नंबर 5 से रायपुर से भुवनेश्वर की ओर चलने लगी। शनिवार का दिन था, भारी भीड़ भी थी, तभी राघव भी बोगी S – 10 में सवार हो गया। उसी समय टीटीयो का झुंड आया उन्होंने डिसाइड किया आप उधर जाओ हम इधर जाते हैं फिर क्या? वहां रेलवे थ्योरी लागू हो गई। छत्तीसगढ़ प्रशासनिक अकादमी निमोरा रायपुर से छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग – 2011 की परीक्षा में चयनित प्रतिभागियों  का आधारभूत प्रशिक्षण चल रहा था उस समय।  रेलवे थ्योरी की बात निमोरा में प्रशिक्षण देने आए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री जोशी सर से सुना था। उस समय राघव बेच – 03 में प्रशिक्षण वाणिज्यिक कर निरीक्षक के हैसियत से में ले रहा था । हां रेलवे थ्योरी की बात हम कर रहे थे। उन्होंने बताया था कि जब हम रेलवे में सामान्य रूप से बिना रिजर्वेशन से चढ़ते हैं तो हमारी व्यवहार की प्रकृति, प्रवृत्ति एवं मनोवृति मानवता की ज्योति की चाह रखती है वही उलट दें तो यह ज्योति बुझ जाती है। क्यों ऐसा होता है? इसके पीछे के तर्क को बताया। क्योंकि बात पैसे एवं रिजर्वेशन के अधिकार की होती हैं। 

राघव ने जैसे ही एक सीट पर बैठा तभी एक व्यक्ति ने बड़ी आश्चर्य से उसे देखा एवं कहा इतनी आराम से आप यहां कैसे बैठ गए ? तभी और दो उम्रदराज व्यक्ति (उम्र यही कोई 50- 55 वर्ष की आस पास हो सकती है) आकर उससे भी ज्यादा आराम से बैठ गए । वह व्यक्ति अपेक्षित महसूस करने लगा, यूं कहें अनाधिकृत रूप से उनको बैठा सोच अपने को असहज महसूस करने लगा।  उसके धैर्य की बांध अब टूट गई । उसने अपने भौंहें चढ़ाते हुए कहा आप लोगों को  समझना चाहिए की कोई व्यक्ति रिजर्वेशन कराकर बड़ी दूर से आ रहा है । इसका मतलब रेलवे थ्योरी आप सब समझ ही चुके होंगे क्या हुआ होगा । राघव के बाद बैठे व्यक्ति में से एक व्यक्ति खड़ा रहा एवं दूसरा बड़ा ही ज्योति के चाह रखने वाला था । वह मानवता की ज्योत जलाने की बात की व कहा थोड़ा एडजस्ट की बात चलती है क्योंकि यह इंडिया है। हम अगले स्टेशन तक ही जाएंगे राघव बीच में दोनों के बैठा था । उसने रिजर्वेशन वाले की बातों को मुखमुद्रा से स्वीकार करते हुए उठ गया तभी माहौल में थोड़ी उष्णता कम हुई । टीटी मौन से निकल लिए , राघव और लोगों ने भी सहयोग ले ली एवं दे दी। राघव ऊपर वाले बर्थ में चल गया । नीचे चार व्यक्तियों का एक समूह था, वह लग रहे थे किसी विभाग के कर्मचारी होंगे । उनमें से एक चुनाव ट्रेनिंग की बात कर रहा था। उस समय नगर निगम, नगर पालिका एवं नगर पंचायतों में चुनाव हो चुके थे। स्थानीय निकाय ग्राम पंचायत में होना बाकी था  वर्ष 2015 में छत्तीसगढ़ से। 

राघव पेपर पढ़ रहा था । श्रीलंका में भी राष्ट्रपति पद पर महिंद्रा राजपक्षे के साथ जीत की बढ़त लेते हुए तमिल समर्थक श्री सेना नायके चुने जा चुके हैं चुनाव के मुद्दे में भ्रष्टाचार शीर्ष पर रही क्योंकि वह मानवाधिकार एवं सैन्य हस्तक्षेप वाले राज्यपक्षे सैन्य समर्थक एवं तमिलों के विरुद्ध रहे जो उनके पतन का कारण रही पेपर के संपादकीय पेज पर यह लिखा था । हार जीत तो लोकतंत्र के चक्र हैं, जिसके पहिए पर जनादेश से जनता जनप्रतिनिधियों रथारूढ़ करती है या उनको नीचे ले आती है ताकि वह यथार्थ से रूबरू हो सके । इन महोदयों ने  एक नई बात की व स्वाद का चटकारा लगाने की शुरुआत की जो काफी संवेदनशील एवं मार्मिक मुद्दा था तथा ज्वलंत भी था । तभी आवाज आई रायगढ़ में तो अब छक्कों का राज हो गया। वहां अब जनता किन्नरों की तालियां सुनेगी तभी उनके समर्थकों ने ठहाका लगाया एवं उनके बारे में कमेंट करने लगे । ऊपर बैठा राघव सब कुछ सुन रहा था उसे रायगढ़ के अपनेपन का बोध हुआ एवं उसके कान खड़े हो गए , दिल की धड़कन बढ़ गई तथा मन विचलित हो उठा । लगा इनको एक बात बताऊं पर धैर्य ने कहा सुनो तो सही इतनी जल्दी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।  यह उम्र दराज हैं एवं अनुभवी भी हैं । उन्होंने नई निर्वाचित महापौर के बारे में उसकी शिक्षा-दीक्षा एवं उसकी जीत में दी गई साक्षात्कार एवं व्यक्तित्व पर कमेंट किया एवं स्वाद लेते हुए मजा ले रहे थे । बाकी सब सुन रहे थे । उनमें राघव भी था पर उसकी प्रतिक्रिया अंदर चल रही थी। तभी एक व्यक्ति ने कहा कि मुझे उस में दम नजर नहीं आता । दूसरा ने कहा की बोल रही थी कि वह अंदर में नहीं बैठेगी क्योंकि कर्मचारी आम आदमी को अंदर उससे मिलने नहीं देंगे। तभी तीसरे ने कहा वह बाहर बैठकर भृत्य बनेगी और क्या? एक कमेंट और आया कहा उसको वहां के अग्र समाज यूज करेंगे और क्या है ? राघव सोच रहा था मैं नहीं जानता वे कितना सही है या गलत, पर उनके मन में मैल के ठहाके थे जो उसके मुखमुद्रा एवं हाव भाव से प्रतिबिंबित हो रहा था । तभी राघव को  लगा कि यह सिक्के के एक ही पहलू को देख रहे हैं दूसरे पहलू पर क्यों नहीं सोचते ? हर घटना के कई पहलू होते हैं उन सबको देखना सही होता है सबको बिना सोचे समझे निर्णय लेना तर्क संगत नही है । 

रायगढ़ की जनता सामाजिक न्याय की अवधारणा को राजनीतिक न्याय से जोड़के लैंगिक न्याय भी की है जो भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय है । वर्ष – 2015 राजनीति के अध्याय में एक अहम वर्ष रहा है।  क्योंकि केंद्र से वीकेंद्र तक नए अध्याय सम्मिलित किए गए जनता के द्वारा एवं नई दिशा में उसे मोड़ा गया है । जनता रायगढ़ में अन्य राजनीतिक पार्टियों से वहां  तंग आ चुकी थी। उन्होंने यह जनादेश दिया है उन राजनीतिक पार्टियों को  कि आप सब पर हमें अब भरोसा नही रहा आप से भला तो एक किन्नर है। एक सांकेतिक प्रहार का इतना अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है लोकतंत्र में । जनता लोकतंत्र के ऊपर नेता तंत्र को हावी होते देख चुकी थी इसलिए उसको सिर के बल खड़े कर दिया ताकि सत्ता की  कुर्सी  पर बैठने से पहले सिरसासन का योगाभ्यास कर ले कि यह जमीन से जुड़कर सिर को नीचे रखकर किया जाता है । उलाहना देने वाले वे अधिकारी वर्ग के थे ऐसा उनके बातों से लग रहा था । लेकिन वह भी भ्रष्टाचार के नुमाइंदे या पुलिंग थे जो उस समय प्रशासन व शासन में जोर पकड़ी थी । 

इसी साल दिल्ली में भी एक नए युग की शुरुआत हो रही थी राजनीतिक इतिहास में। इस नवोदित सरकार ने सरकार के रूप में सरकार तो नहीं चला पाए परंतु उसने भ्रष्टाचार की जड़ को काटने का पैराडाइम स्विफ्ट जरूर किया। वह विषम परिस्थितियों में स्वयं को बड़े धैर्य व लगन से उभारा एवं स्पष्ट जनादेश में परिवर्तित किया और दिल्ली में बीजेपी के दिल को अपने काबू में रखा जो लाजमी था । इतना है कि इस नई सरकार ने सिविल सोसाइटी को आगे रखा पर अभी राजनीति में उसकी परिपक्वता की कमी रही ।

यूं तो आग लगाकर हंसना एवं वास्तविकता से आंखें मूंद लेना नासमझी ही कही जा सकती है क्योंकि समाज एवं उसके जनता भलीभांति समझती है कि क्या सही है? क्या गलत है? भले ही वह नोट पर वोट कभी-कभी दे डालती है । परंतु अब वह स्थिति भारतीय मतदाताओं में दिखाई बहुत ही कम देती है । वह अपनी मतदान की कीमत को सही रूप में अपना समझ गया है, जान गया है तथा निर्भीकता से अपनी बातों को रख रहा है जिसके कारण एग्जिट पोल के नतीजे भी अब सही होने लगे हैं । यह वही भारतीय मतदाता है जिसने बड़े-बड़े सत्ताधीशों को  सत्ता के गलियारों में गुमनाम कर दिया व चौराहे पर ला खड़ा किया तो नए – नए लोकतांत्रिक नरेशों को भी आम जनता के बीच से चुन लिया । वास्तव में प्रजा राजा को बनाती है यह सत्य है यथा प्रजा तथा राजा। इसीलिए प्रजा का सशक्त होना बहुत आवश्यक है लोकतंत्र के लिये अन्यथा यह भेंड़तंत्र बनकर रह जाता है।

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