जो प्यादे थे कल शह पाके आज वजीर बन गए
ताउम्र जख़्म दी औरों को वो आज पीर बन गए।
शह देने वाला भी है केवल और केवल एक मोहरा
धुंधला दिखाई देता है चेहरा जब छाता है कोहरा।
कितना हारा कितना जीता कोई मायने नहीं रखता
मायने रखते हैं उसके हौसले छोड़दो सब ढकोसले ।
शह पाने की हमेशा प्यादे की ही होती है फ़ितरत
वजीर जहमत में दिखाता है क्या होता है जसारत।
गर्दिश में खुदको आजमाने का जो जानता है हुनर
उसको नहीं होती है शतरंज के बिसात की फ़िकर।
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