तू मुझे देखती ही रही मैं भी तुझे देखता ही रहा
हमको देखते ही रहे सदा ये जमीं – आसमां
तू मुझमें समाती रही मैं तुझमे समाता रहा
सुध नहीं है हमें कौन ? क्या कहता रहा ?
उम्रभर हमको ये बात खलता रहा
नफ़रत की आग में ये जहाँ क्यों जलता रहा ?
कांटे बिछाए गए क्यों उनके राह में
जल रहे हैं वे एक -दूजे कि चाह में
मजहब इश्क को क्यों बनाया ही नही ?
लिबाज़ में लिपटे लोग ये समझते ही नहीं
तू हंसती ही रही मैं भी हँसता ही रहा
तू ये समझती रही मैं ये समझता रहा ।
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