इश्क जब होता है इंसान आईने के सामने खड़ा होता है
अदाएं उसमें ऐसी आती हैं, वह लाखों में जुदा होता है
दुश्मन हो जाता है जमाना उन परिंदों का
जो बनाना चाहते हैं प्रेम का आशियाना ।
छुपती नहीं इसकी खुशबू लाख छुपाने से
उड़ कर कहाँ जाएं ? यह परिंदे, इस बेरहम जमाने से ।
सोनी – महिवाल, लैला – मजनूं या शिरी – फरहाद
क्या हश्र हुआ इनका ? किसी ने ना सुनी फरियाद ?
इश्क का हमेशा से दुश्मन है जमाना
लैला – मजनूं हो या चाहे हीर – रांझा ।
इश्क करने वालों के अक्सर घर बार उजड़ जाते हैं
ये फसल है ही ऐसी हमेशा बर्बादियों में लहलहाते हैं ।
इश्क खुदा की नेमत है, इबादत है
न हो तो जहां में कई रोग लग जाते हैं ।
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