गणेश श्री गणेश कैसे बने
गणेश एवं कार्तिकेय में जब पूरी दुनिया घूम के पहले आने के लिए उनके माता-पिता ने परीक्षा ली और कहां परिणाम में जो पहले घूम के आएगा वह इस संसार का अग्र पूज्य अधिकारी होगा। किसी भी कार्य एवं पूजा को पहले उसकी वंदना से ही संसार में प्रारंभ होगा यह बात कही। कार्तिकेय उक्त शर्त एवं बातें सुनने के बाद तुरंत अपने वाहन मोर पर बैठ पूरी दुनिया की सैर में निकल गए। वही गणेश जी का वाहन है मुशक। गणेश जी मूषक पर बैठने वाले थे कि उसने कहा प्रभु! तभी गणेश जी सोच में पड़ गए कि मैं अपने वाहन से सृष्टि का सबसे पहले परिक्रमा कैसे कर पाऊंगा। उनके सामने यह चुनौती आन पड़ी। वाहन है तो छोटा गणेश जी है मोटे तगड़े। क्या कभी आपने सोचा अगर गणेश जी के पास कार्तिकेय के वाहन जैसा बड़ा वाहन होता तो क्या होता? गणेश जी के पास यह चुनौती ना होती तो क्या होता? अगर दोनों भाइयों के वाहन उल्टा होते, तात्पर्य गणेश जी का मोर और कार्तिकेय का मूषक तो क्या हुआ होता? अगर दोनों के वाहन समान होता तो? गणेश जी का गरुड़ होता तो क्या हुआ होता।
यह सभी प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है जो जीवन को सही अर्थ देते हैं । गणेश जी ने चुनौती को समझा और उसे अवसर में बदलने के लिए सोच में पड़ गए कि कैसे मैं पूरी दुनिया की सैर कर सकता हूं कम समय में । फिर सोच की गहनता में उन्हें बोध हुआ कि मैंने तो पूरी सृष्टि आज तक देखी ही नहीं है फिर कैसे चक्कर लगाऊंगा । उन्होंने सोचा कि यह दुनिया तो मुझे मेरे माता- पिता ने दिखाया है फिर उन्होंने देर ना करते हुए अपने माता – पिता के चारों ओर घूमना प्रारंभ कर दिया । यह देखकर शिव पार्वती आश्चर्य हुए और पूछा यह क्या कर रहे हो तभी गणेश जी पूरा चक्कर लगाने के बाद बोले हे माता ! हे पिता श्री ! आप ही मेरी दुनिया है आपके आशीर्वाद से मैंने यह दुनिया, यह सृष्टि देखी है । इसीलिए मैं आपके चक्कर लगाकर पूरी दुनिया देख लिया। यह उत्तर पाकर उनके माता-पिता ने आशीर्वाद देते हुए गणेश जी को अग्रपूज्य होने के अधिकारी का माला पहनाते हुए खुश हुए । इस तरह से गणेश जी श्री गणेश बन गए ।
शिक्षा :-
1) गणेश जी ने चुनौती को स्वीकार करते हुए समाधान के लिए सोचा। किसी भी कार्य या समस्या का हल करने से पूर्व हमें सोचना चाहिए भली-भांति ।
2 ) चुनौती को अवसर के रूप में लिया या देखा ।
3 ) श्री गणेश जी ने इमोशनल इंटेलिजेंस (भावनात्मक बुद्धि) का उपयोग किया ।
4 ) चुनौती में गणेश जीने विवेक का इस्तेमाल किया । विपरीत परिस्थिति में हमें अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए ।
5 ) समस्या को समझा और हल खोजने का प्रयत्न किया । अतः हमें समस्या से घबराना नहीं चाहिए ।
6 ) समाधान के विकल्प की तलाश करना शुरू किया । हमको भी विकल्प को खोजना चाहिए ।
7 ) परीक्षा से खुश थे भयभीत नही हुए ना ही उस परिस्थिति से । परीक्षा हमारे व्यक्तित्व को निखारता है ।
8 ) विषम परिस्थिति में भी उन्होंने हार नही मानी बल्कि पूर्ण मनोयोग से समाधान की खोज करते रहे ।
9 ) शक्ति से युक्ति ज्यादा कारगर है ।
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