मन को होने दो निर्मल
बहने दो अश्कों को अविरल
अपना पराया भेद भुला दो
सबको अपने पास बुला लो
मानवता को तुम अपना लो
अपने जीवन को दोहरा लो
मन से मिटा के सारे गरल
बजने दो एक संगीत सरल
कर दो अपना पूर्ण समर्पण
जीवन बन जाए एक दर्पण
प्रेम को अपना ताज बना लो
नाज हो जिस पर सबको प्रतिपल
बहने दो अश्को को अविरल
मन को होने दो निर्मल
दोनों का अस्तित्व विलीन
एक के बिन तो दूजा हीन
कभी उठे जो द्वंद की हलचल
आना होठों पर मुस्कान बन कर
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