हिमालय की ऊंचाइयों से पूछो
गहराइयों में है कौन ?
गहराइयों में उतर के देखो
ऊंचाइयों क्यों है मौन ?
कहते हिमशिखर ऊंचाइयों से
नीचे अब जाना होगा
बहके अब गिर जाने दो
धरा पर जीवन सजाना होगा
अंतस में है कितने हलचल …….
शिखरों में हो जाता शीतल
बहके होता वह निर्मल
बहता रहे सदा अविरल
बहके बिखरके और निखरके
आता है अंतस के शिखर से
शिखर में सब निर्जन है
धरा पर होता सृजन है ……..
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