Hansta hun Tanhai me

 

 

हमेशा ऊंचाइयों में उड़ने का हौसला रखा कुछ भी हो

दुनियां वाले अक्सर  मुझे  मेरी  हैसियत ही पूछते रहे ।

 

पर हम भी पागल ही थे और ऊंचाइयों में उड़ने के वास्ते

पंख फैलाके उड़ाने भरे कभी सोचा नही कोई  क्या कहे ?

 

फर्श से अर्श तक पहुंचने के  दरमियां  बहुत कुछ बदले

फासले थे वे मिट गये मजबूरियां अब दम तोड़ चुकीं थीं ।

 

पहले आलोचनाओं का दौर था अब  समालोचनाओं का 

पहले कुछ पाने का दौर था  अब पाया को संभालने का ।

 

जिन गलियों से गुजरे आँखों मे गैर जिम्मेदार नज़र आये थे

आज लोगों के उन्ही आँखों में जिम्मेदार दमदार नज़र आये ।

 

हँसता हूँ जब भी तन्हाई में होता हूँ तो उन बातों को सोचकर

दुनियाँ वालों क्या होता मेरा ? जो सोचा होता खुदको कमतर 

 

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