कोविड का लहर फिर ढाया कहर
आया अब नए नए स्ट्रेन में
नए- नए सिम्टम्स
फेल कर रहा सिस्टम
फिर शुरू हुआ लॉक डाउन का दौर
आम में आगये हैं बौर
टीकाकरण चल रहा
मौसम फिर बदल रहा
लोगों में है कई भ्रांति इसलिए
टिका से न मिल रही शांति। 1
समाचार पत्र में आ रहे
नित नए- नए कोविड के सिद्धांत
टिका आई तो मौज मनाई
चारों तरफ किया ढिलाई
मुखौटा उतारना था…..
मास्क उतार दिए
सेनिटाइजर का नाम भुला दिया
कोविड – 19 की फिर बाड़ आगई
तब जाके हमने सब कबूला
सभी माजरा देख के हैं आगबबुला
किसके सिर पे फोड़ें ठीकरा
मंथन चल रहा ……..
बार – बार मौसम क्यों बदल रहा ? 2
जहाँ – जहाँ चल रही चुनाव
कोविड की नही कोई कहर
हर तरफ भीड़ है बस चुनाव की लहर
नेता जिधर – जिधर जा रहे
कोरोना डर से भाग रहा
विचित्र से चित्र है ……..
कौन दुश्मन ? कौन मित्र है ?
महाराष्ट्र , एम. पी.व सी. जी. में हाहाकार
बंगाल, केरल, तमिलनाडु ,असम में चुनाव प्रचार
जनता कर रही सोच विचार
कोविड चुनाव का क्या कुछ है नाता ?
विश्लेषको को भी समझ नही आता। 3
लगता है चुनाव की भीड़ में
कोरोना कुचला गया
या फिर यह कोई नया चाल चल गया
चुनावी भाषणों को सुन हंसी से पगला गया
कुछ तो जरूर हुया है ……
यहां कोविड के गाइडलाइन के धज्जियाँ उड़ी
फिर भी यह लोगों को कम छुया है क्या ?
एकबार एक संवाददाता
कोरोना को खोज रहा था
अचानक उसने पाया एक जगह ….
कोरोना सुबक सुबक के रो रहा था 4
संवाददाता ने कोरोना से दूरी बनाके
मास्क व सेनिटाइजर लगा के पूछा
क्यों यहां इतना रो रहे हो भाई ?
कोरोना कुछ न बोला
अपना मुंह तक ना खोला
फिर से संवाददाता ने पूछा
कोरोना समझ गया ये ऐसे नही छोड़ेगा पीछा
बहुत पूछने के बाद आखिर उसने मुह खोला
गहरी सांस लेके कोरोना ने बोला
भाई डर गया है सुनके यहां मेरा चोला
नेताओं ने जो जो कुछ बोला
मैं ने उनके दिल को टटोला
तभी पता चला ये तो चढ़ने वाला है
केवल उड़नखटोला …..
उसे खुद कुछ भी याद नही
उसने चुनावों में क्या- क्या बोला ?
क्यों बोला किसके लिए बोला ?
भर रहा वह सिर्फ और सिर्फ अपनी झोला
ना तौला न मोला
जो भी मन में आया वह बोला। 5
संवाददाता ने पूछा वो कैसे ?
कोरोना ने बोला चुनाव क्या ऐसे होता है ?
समझ नही आता कौन हंसता है कौन रोता है ?
भाई मेरा अदना सा कद छोटा सा काम
इन नेताओं की वजह से मेरा होता बदनाम है
मैं तो अनुशासन से चलता हूँ
जो ना माने इसको उसके पास पलता हूँ
पर नेता में न है कोई अनुशासन
चुनावों में बस देता भाषण
जनता जुटाने के जद्दोजहद में लगा
कल के लिए नही घर मे राशन
माथे पे लगाए कई तरह तरह के टिका
अब एक और लगवालो कोरोना का टीका
इस टीका का मजहब से न लेना देना है
काम इसका है मजबूत प्रतिरक्षा देना। 6
संवाददाता ने कोविड-19 से पूछा
तुम गरीबों की बस्ती में क्यों नही आते ?
उसने कहा यहां उनकी दशा पूछने वाला कौन ?
रोटी ,कपड़ा, मकान ……………
इसकी जुगत में जाती कितनी जान ?
इनकी दशा देखके मेरा जमीर मुझे रोकता है
पता नही इनके लिए कौन सोचता है ?
जिनके पास कुछ नही ….
वो मतदान करते हैं
जिनके पास करोड़ों है वो दान लेते हैं
जनता सबकुछ मान लेते हैं
स्वार्थों के लिए ये अनुशासन तोड़ते
सुरक्षा चक्र अपना खुद ही तोड़ते। 7
सबसे ज्यादा मार मुझसे गरीबों को होगा
उनसे जुड़े करीबों को होगा
अब बताओ तुम मैं क्या करूँ ?
हाँ एक और बात है
गरीब रोज मिलावट का खाना खाता
इससे लड़- लड़ के मजबूत हो जाता
एक भूख मिटाने के लिए
गलत कर बैठते हैं…
दूसरा भूख बढ़ाने के लिये
अपराध करता है ….
अंतर स्पष्ट दिखाई देता
कर्म की कार्यवाही में… 8
संवाददाता ने फिर पूछा
और क्या – क्या देखा ? अभी तक
कोविड फिर सुबकने लगा
रुआँसा हो उसका आवाज भारी हो गया
बोला हर तरफ असमानता दिखता
मिलावट का सामान बाज़ार में बिकता
मौत सस्ता जीवन महंगा है
जो ज्यादा लिबाज़ पहना घूमता
वही तो सबसे ज्यादा नंगा है……
मजहब के नाम पर दंगा है
सियासत की कुर्सी में जो बैठा
वही यहां चंगा है……. 9
वक्त है भीड़ को जनता बनाने का
नए – नए नुस्खे आजमाने का
पर सियासत के गलियारों में
सभी गलियार हो गए ……..
जनता को भीड़ में बदलने
हमेशा की तरह इस बार भी तैयार हो गए
अरे ! वक्त का तकाजा तो समझो
जनता की जान कुर्सी में झोंक दी
कोविड देखके यह माजरा सहमा
मुझसे भी बड़े कोविड तो सिस्टम में हैं
इनका टीका कौन खोज रहा
खोजे तो लगाओ भी कैसे
यह कोविड का प्रश्न बड़ा है……….
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