पैकरों के पीछे पैकारों की कई कहानियां हैं
कहीं दफन कहीं लिखी तो कहीं जुबानियां है ।
पैमाना में भरके पैमान बहुत लिए जाते हैं
बाढ़ उतरने के बाद दरिया विरान नजर आते हैं ।
अक्सर यह हमने पाया है, देखा है, इस जहां में
बाढ़ के द्वारा लाये गाद में ही फसल लहलहाते हैं ।
हम यह सोचके अक्सर हैरान जो जाया करते थे
आज पता चला बाढ़ में डूबने वाले कैसे उबर आते हैं ।
आखिर दुःख भी एक सैलाब ही तो है और क्या ?
अक्सर घबराहट में ही सच को खोज नही पाते हैं ।
धुँआ जहां भी उठे समझो आग तो होता ही है
भूख लगे जो किसी मासूम को वो रोता भी है ।
कुदरत की लाठी में आवाज तो नही होता साथी
किसी का हक छीनने वाला एक दिन रोता ही है ।
पैकर – चेहरा, मुख, शरीर
पैकार – युद्ध , लड़ाई
पैमान – कसम, वादा , सौगंध
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