ख्वाबों में आके क्यों परेशां करते हो
तुमको ही देखा करते हैं परेशां होके अब भी
हर मुश्किलों को जो तुम आसान करते हो
जिंदगी के पन्नों में उसको लिख रहें हैं अब भी
देखकर जो सवाल तुम आँख से करते हो
उनका हल ढूंढ रहें हैं दिन – रात हम अब भी
हंसकर लूट लिया था जहाँ मुझको तुमने
उन गलियों में फुल, पेड़, पत्ते मुस्कुरा रहें हैं अब भी
कह दिया था तुमने धडकनों को जाने क्या
आज भी तुमको गुनगुना रहे हैं वो सुबह – शाम अब भी
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