दरख़्तों से कह दो की
पत्तियों ने बगावत कर दी है
हवा जरूर जानता होगा
उनके कान किसने भर दी है
आखिर वह पत्ते ही हैं
जो देखते चांद ,सितारे
पवन , सूरज के नजारे
वे लहराते हैं, इतराते हैं
जब तूफान आती है तब
जड़ के बारे में पूछे जाते हैं
अंधेरे गहरे में जो न धसा
वहीं पेड़ अक्सर गिर जाते हैं
जड़ों से जाइलम में जा रहा
पत्तियों का फ्लोयम से बट रहा
जिस दरख्त पर यह सही नहीं
वही दरख्त धीरे-धीरे मुरझा रहा
दुनिया भी है एक दरख्त
बहता है भावनाओं का रक्त
कौन जड़ है ? कौन पत्ता ?
क्या किसी एक की है सत्ता ?
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