Covid 19 | कोविड 19

Visualization of the coronavirus causing COVID-19

कोविड – 19

 

मानव छिन्न-भिन्न

मानवता पर प्रश्न चिन्ह ?

जीवन को मिला नया आयाम

बेबसी का आलम

घर में करता आराम

जिंदगी में पहले कितनी रफ्तार थी

सब कुछ गिरफ्तार थी

साथ थे फिर भी भागते रहे

बैठने वाले कांपते रहे

मानव दिया तूने हरदम स्वार्थ का सिद्धांत

भुलाया वेद – वेदांत

सारे खोखले तेरे वादे

प्रकृति समझी इरादे

लगते नहीं हरगिज़ नेक

आईना में हकीकत कहां

खुद को तू देख

प्रकृति लगी है तुझ को फेंक

मानवता का किया तूने हनन

स्वार्थ में करता रहा खनन – उत्खनन

अपनी करनी से देता मृत्यु को निमंत्रण  । 1

 

नोवल कोरोनावायरस

चुसती जीवन का रस

सिखाती नई जीवन शैली

बंद करो मानव झूठी रैली

कोरोना बन गया जीवन का रोना

आराम है हराम

दिखावटी सभ्यता धराशाई

ऐसी है शामत आई

रहने की आदत पड़ी थी

सदा जिनको ठंडक

जान आ पड़ी उनके हलक

सब कुछ अलग – थलग

प्रकृति से जो रहे दूर

हैं आज हुए मजबूर

नियति का ऐसा खेल

फिर से हो रहा मेल

घर बनी कैदखाना

मेहमान आए तो ना ना ना

देखता है सदा वह मौन

आज पूछता जिम्मेदार कौन  ? 2

 

करती प्रकृति खुद को संतुलन

स्वच्छ होती वायु ,नीलगगन

हरित समृद्ध धारा

नीली नदियां

नीला समंदर

मानव बेबस बैठा घर के अंदर

हंसते मानव पर पेड़ों के बंदर

सोचता मानव खुद को सदा सिकंदर

आज नाचता मानव

प्रकृति बनी मदारी

बदलती है समय की बारी

दुख की घड़ी में खुद को खोजता इंसान

तू कहां है ?  कहां है ? ऐ मेरे भगवान

कितनी जिंदगियों को तूने छीना ?

भाता रहा तुझे सदा उन पशमीना

चक्कर इसके ऐसे चलाया

खुद ही खुद के लिए

बैठा बन गया कमीना । 3

 

बुद्धिजीवी बन के तू

सबको भर माता रहा

मकड़ी की भांति

स्वार्थ से जाल बुना

सब सोच समझकर चुना

खुद के जाल में खुद फंसता रहा

फिर भी नासमझ हंसता रहा

ले फिर अब हंस

अपने बनाए स्वार्थ के

आशियाना में ही धस

स्वार्थ को ही तेरे

तेरे लिए हथियार बनाएगी

मति हरके तेरे पहले

तुझको ही मिटाएगी

रे अतिवादी

बुद्धिजीवी

मिथ्याभाषी

भौतिकतावादी

तकनीकों के बाद शाह

कौन सुनेगा तेरी आह ?

कब आएगी समझ ?

अब तू समझ नासमझ

हर बार मेंरा है तुझे समझाना

तेरे पास है सदा बहाना । 4

 

अर्थव्यवस्था की ले आड़

खेल खेलता सब

बहुत हो गया तेरा खेल

तू अब झेल

सबको चाहिए आज मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र

सदियों से चला आ रहा लोकतंत्र

भेड़ों सा झुंड – मुंड

चलते रहे सभी भेड़ चाल

बस पांच साल , पांच साल

चुनाव का बिगुल बज गया

वोट नोट में बट गया

जनता – जनार्दन की नियत में खोट

भाड़ में जाए लोकतंत्र

कीमत लगाते हर एक वोट

जनतंत्र , गणतंत्र

सबका है एक मंत्र

जनता द्वारा

जनता के लिए

जनता का शासन

अब्राहम लिंकन ने दिया

सदियों पहले हुई प्रकाशन

दिए गए कितने भाषण

डोला कभी ना इंद्रासन

सुखासन – सुखासन

क्या है भाई सुशासन ? 5

 

द्रोपदी का चीर हरण करता रहा दुशासन

एक देखा महाभारत

बड़े-बड़े महारथी

आरूढ़  थे रथ

क्या उनको भी मालूम था ?

सत्य ,ज्ञान ,कर्म पथ

आज भी है वहीं भारत

हर तरफ है दुशासन

कैसे होगा सुशासन

सबको चाहिए यहां आसन

सुखासन – सुखासन

मिलते विरले ज्ञानी, मुनि

घूमते रहते यहां शकुनी

कौन बैठेगा वज्रासन ?

जीवन साधे कई आसन

आएगा तभी सुशासन  ।  6

 

भौतिकता वादी संस्कृति

सबसे ज्यादा आक्रांत

पिछड़े प्रकृति से जुड़े

उनके होठों पर है मुस्कान

पानी पीने वाला मिनरल

सबसे ज्यादा है वायरल

सब सिद्धांतों वादों को किया धता

खोल पोल सब कुछ दिया बता

सिरमौर बनने की जारी लड़ाई

हर कोई कर रहा अपनी बड़ाई

शाश्वतत है परिवर्तन

साध रहे सभी शक्ति संतुलन

नया दौर है जैविक हथियार

मानवता बेबस लाचार

स्वार्थ पूर्ति में बने धृतराष्ट्र

यह निर्णय हैं वंश- नाश

महाशक्ति बनने की लगी होड़

बन रहे नित नए गठजोड़

एक बार खरबूजा कटा था

सब में बटा था ।  7

 

covid-19

सभी होम क्वॉरेंटाइन

हर जगह 1 मीटर की दूरी

किसी से ना मिलने की मिलाने की मजबूरी

हर जगह खुली मधुशाला

बंद पड़ी है पाठशाला

अकड़ के चलता है आज हर पीने वाला

खुद को अर्थव्यवस्था का बता भागीदार

समझता है स्वयं को सरकार

शोषण का सिलसिला सदा चला

बदले तो सिर्फ उसके पर्याय

जमीदार थे ठेकेदार हो गए

उन्हीं के तो सरकार हो गए

ज्यादा हैं  इनसे चाटुकार

हर तंत्र को यह करते बीमार

व्यक्तिवादी आज मुरझा रहे

समष्टिवादी खिलखिला रहे ।  8

 

नोबेल कोरोनावायरस

घरों में ही रहो बस

शब्द गूंजता क्वॉरेंटाइन क्वॉरेंटाइन

शिक्षा मिल रही ऑनलाइन

बच्चे विद्यार्थी हाथ में मोबाइल धर

अभिभावक भी बैठे हैं घर

घरों में  हो रहा महाभारत

चारों तरफ  महारथी , रथी और रथ

अग्नीपथ चलो अग्नीपथ

रामायण के फिर दोहे चौपाई

सीखते रहो सभी भाई – भाई

आदर्शवाद की रखती बुनियाद

बैठे-बैठे बढ़ते अवसाद

उतर पड़े  अब यथार्थवादी

करते सभी नुक्ताचीनी

महाभारत में सुन गीता

रामायण में देख सीता ।  9

 

बचाने सिविलाइजेशन

कर रहे सैनिटाइजेशन

सैनिटाइजर का बोलबाला

आजकल रोज हाथ धोता

खाने से पहले हर भोला- भाला

पहली बार देखा ऐसा भारत

कौन खींचे मजदूरों का रथ ?

हर तरफ है लाक डाउन

गांव-गांव , टाउन – टाउन

पैदल ही निकले बनाके दल

मजदूरों के जीवन प्रश्नों का ?

दिखता नहीं कोई हल

सरकारों के माथे पर पढ़ते बल

रेखाएं बनके यह उभरती

दशा फिर भी न सुधरती

सुनसान गलियां सुने शहर

करुणा का ही चलता लहर

सभी धरा में उतरे

आसमान में ही जो उड़ते ।   10

 

गांव खुशहाल है, आबाद है

शहर ही हर तरफ से बर्बाद है

सेंसेक्स की कहानी का ना हल्ला

शांति ही शांति है गली मोहल्ला

मीडिया भी है हालाखान

तैनात है सीमा में चीन, पाकिस्तान

हंस रहे आज सभी जीव जगत

मानव कैसे बनता बगुला भगत

खोदता मानव कैसे खुद का ही कब्रिस्तान

बड़े-बड़े सम्मेलन

रोटियां बेलने वाले बेलन

बैठक सब जगह है आभासी

कार्य ,सीख एवं शिक्षा

महिमामंडन का खंडन हो रहा

मांगता मानव जान की भिक्षा

एक बार सोचके ठहर

सुनामी बन के बताता तेरी नाकामी

सुनता नहीं क्यों ? ब्रह्मांड में बदनामी

मानव तू क्या ? बीज बो रहा

जो नहीं होता था वह हो रहा

सबको याद आता बंधु – बांधव

सिर पर करता आज मृत्यु तांडव ।  11

 

मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर ,गुरुद्वारा

सब बंद है

देवालय में देव भी क्वॉरेंटाइन

कोरोना ने यह बतलाया

अंतस की गहराई में उतर

खोज मोती की माला

एक ही ईश्वर सबके अंदर

सोच से अपने हमने

उसको कितना अलग?  बना डाला

लड़ते- झगड़ते ,रोते – रुलाते

हम सबको कौन भटकाते ?

क्यों भटका ते ?

अलग-अलग बताते

धर्म क्या है ?

आखिर धर्म क्यों है ?

आखिर धर्म किसका है ?

कहां से आया ?

किसके लिए आया यह धर्म ?

धर्म के नाम पर फसाद क्यों ?

दंगा क्यों ?

आदमी नंगा क्यों  ?

धर्म को भी आखिर

व्यापार ही तो बना डाला

क्या कभी खुद को खंगाला ?  12

 

उसका कर भौतिकी करण

ग्कुरूप बना दिया

अदृश्य को बिना देखे

दृश्य मान बना दिया

सबको स्वार्थ में लड़ा डाला

हर पल भारी है

व्यापारियों का पाला

देने वालों को तुम क्या दोगे  ?

तुम्हारे रुपयों को क्या करेगा ?

वह सोने को क्या करेगा  ?

पंडित मोमिन पादरी ठेकेदार बन

चलाते हैं ईश्वर को

पैसों से ही आजकल यह बुलाते हैं

राजनीतिज्ञों की बाबाओं से मेल है

इसी में पूरी राजनीति का खेल है

राजनीति में धर्म बदलता रूप

राजनीतिज्ञ उपयोग करते खूब ।  13

 

कोविड-19 शिक्षक बना है

बाकी सब विद्यार्थी

बहुत पड़ी पुस्तक पोथी

क्या हुआ स्वार्थी ?

ढ़ोंग सब बंद कर

देख ले इत्मीनान से एक नजर

स्थलमंडल, जलमंडल ,वायुमंडल

अंतरिक्ष ,वन, वृक्ष

पशु -पक्षी , जड़- चेतन

सब व्यथित कुछ पुकारते ,गुहारते

कह रहे हैं तुझे निहारते

सुन  सब की व्यथा की कथा

तुझको प्रकृति करती सचेत

सुखा ,सुनामी ,भूकंप ,बाढ़

प्रकृति देती  तुमको लताड़

विकास का पैमाना बदल

सतत विकास सब जानते

पर नहीं यहां कोई मानव मानते

क्या यही तेरी महानता ?

वसुदेव कुटुंबकम वेदों में उच्चारित

सभी ऑर्गेनिक की ओर लौटो

तेरी दुर्बुद्धि सब पर पड़ती भारी

चारों तरफ है महामारी

अर्थव्यवस्था में व्यवस्था समा रही

नहीं आफतों  को बुला रही ।  14

 

बन मितव्ययी ओ अपव्ययी

दिखावे में ना बर्बाद हो

आधुनिकता की अंधी दौड़

सब लगते गौण

सामाजिक मूल्य छितरे -बिखरे

तकनीकीयों का जाल

सूचनाओं का कमाल

भ्रम के साम्राज्य का विस्तार

वास्तविकता का बोध कहां ?

बेलगाम घोड़ों की रेस

अब रोके नहीं रुकती

शेयर सूचकांक की बुलंदी

बुल्स – बियर की लड़ाई

हरदम बढ़ती जाती खाई

मास मीडिया का रोल

खाई में सब होता धराशाई

कृत्रिम मानव का दानव

भाव सुनी ,जड़ विकसित

वेदनाओं का ना होता ज्ञान

किसी को किसी का नहीं संज्ञान

वरदान या अभिशाप विज्ञान

अचरज में गोता लगाता जहान  ।  15

 

 

उत्तर आधुनिकता एक बड़ा रोग

भीड़ बड़ी,  हैं लाखों लोग

सब अनजान

ढूंढते पहचान

कीमत क्या है ?

लोगों की जान

व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा

अलगाववाद की चरम सीमा

एक महा विस्फोट

कोई ना रोक टोक

नोवल कोरोनावायरस

गंध – सुगंध का भारी शौकीन

जिसको पकड़ता जकड़ता

उससे यह सब लेता छीन

और तो और सब स्वादहीन

गले में खराश

उड़ाता हमारा उपहास

पियो गरम लेमन वाटर

मेंढक की तरह करो टर- टर  ।  16

 

कोविड-19

रहो 14 दिन क्वारंटाइन

घर में रहो , करो आत्मबोध

जीवन मृत्यु पर करो शोध

मोबाइल सबसे बड़ा अभी हुआ साथी

यही ऊंट ,घोड़ा ,शेर ,हाथी

है एक जगह रहते, जानकारी रहती दुनिया की

कोरोना कुछ पूछ रहा हमसे कई प्रश्न

चुनौती में ही है अवसर का जश्न

नए विचार ,नए तरीका नवाचार

घर बैठे ही मना रहे त्यौहार

मानव को किया तार-तार

करता रहा प्रहार बारंबार

सब नए नए राह चुने हैं

गलियां सड़के शहर सुने सुने

सभी मानव लगा रहे नकाब

संसार ढूंढ रहा इसका जवाब  ।  17

 

हर तरफ पुलिस , प्रशासन  मुस्तैद

बिना परमिशन आना जाना अवैध

बेवजह जहां होती थी भीड़

समझदारों को जिनसे होती थी चीड़

शादी ,विवाह ,समारोह के ढकोसले

मानव ताक रहा बैठा अपने घोंसले

दिखाई न देती अब फालतू के चोचले

ना राहों पर लैला मजनू ना मनचले

सब कुछ थमी लंबी लंबी सी दिन रैन

जगत के और जीवो को

है अभी सुखचैन

इंसान आज बेबस और बेचैन

नए राहों की तलाश में सबकी नैन  ।   18

 

कोरोना ने लाई नई क्रान्ति

हरतरफ है आज शांति

घरों में सभी हैं बैठे पर साथ रहना है भ्रांति

मोबाईल  इस दौर में बड़ा काम आ रहा

शिक्षक उसीसे सबको पाठ पढ़ा रहा

समुदाय में शिक्षा आज है सफल

बड़े बड़े योजना भी पहले हो गए थे विफल

समुदाय से शिक्षा नही जुड़ पाई थी

कोविड- 19 से खुला शिक्षा के नए आयाम

समुदाय में विद्यालय पहुँचा

जनता को मालूम क्या ऊंचा -नीचा ?

ध्यान सभी का इसने खींचा

हर कोई घर मे कर रहा व्यायाम सुबह -शाम

अनजान है सभी आगे का क्या होगा अंजाम ?   19

 

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