छोटी-छोटी सी खुशियां थी छोटी सी अटखेली
याद आती है वो बचपन जो इन गलियों में खेली
छोटी छोटी सी……….
हम तो अपनी दुनिया में जीते थे कभी ना रहते तन्हा
जहां भी चलते धूल उड़ाते पाव हमारे नन्हा
पल-पल बदलने वाली चंचल मन थी सूरत भोली
छोटी छोटी सी …………
खिलखिलाके हंसते थे सिसकियों में कभी रोते थे
मांग हमारी जब पूरी हो देखो फिर कैसे बनते थे
हंसते थे लोग हमारे सुनके तोतली बोली
छोटी छोटी सी ……………
उछल- कूद हम करते थे नई उमंगे भरते थे
मुश्कान हमारी लोगों को खुश करते थे
हरपल हमने मिलके खेल नया है खेली
छोटी छोटी सी ………………
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