Chand nikalta hai | चाँद निकलता है 

full-moon above snow-capped mountain painting

चाँद निकलता है 

चलते – चलते कहता है

वक्त ठहरता है कहाँ … ? 

आहिस्ता – आहिस्ता 

बदलता है, चलता है

घटता है, बढ़ता है ……

कभी अमावस की रात 

कभी पूनम के साथ 

रातों में चमकता है …..

 

चाँद निकलता है

बहुत कुछ सिखाता है ….

रात की कीमत बढ़ाता है

अंधेरे में मुस्कुराता ……

धीरज धरना …… 

पूरा करना खुदको कैसे ?

मिले दाग को धोना…

चमकना है क्यों……. ?

यह बतलाता है…..

 

चाँद निकलता है

झिलमिलाते तारों के बीच

अपनी तकदीर की रेखाएं खींच

चमकता जाता है……

देखे उसने कई उतार- चढ़ाव

सिखाता हमको जोड़ – घटाव

शांत रखो अपना वर्ताव

कैसा समृद्धि ? कैसा अभाव ?

समदर्शी होना कह जाता है

 

चाँद निकलता है

चकोर चकोरी का ………

दर्पण बन जाता है….

जीवन का गणित ….

यह सिखलाता है

सूरज को फिर जिम्मा दे

कहीं छिप जाता है 

दिन ढलने के बाद…….

फिर जल जाता है 

 

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